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रमज़ान- एक पवित्र महीना।

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आज सुबह सुबह हमारे प्रिय मित्र का कुशल क्षेम मैसेज आया।मैसेज के अंत मे लिखा था रमादान करीम। रमज़ान का पवित्र महीना शुरू हो गया।रमज़ान या रमादान एक ही शब्द है।बस भाषा का फर्क है, क्योंकि अरबी भाषा में 'ज़' अक्षर का उच्‍चारण ही नहीं है।बल्कि उसे 'द'  बोला जाता है।इसिलए आप इसे कैसे भी कहें बात एक ही है।
रमादान करीम भी शानदार अभिव्यक्ति है।रमजान या रमादान करीम का मतलब होता है कि रमजान आपके लिए उदार हो यानी इन दिनों आपको किसी तरह की मुसीबत का सामना ना करना पड़े।  मित्र आपकी शुभकामनाओ के लिए धन्यवाद।
हिन्दू मुस्लिम समाज तक़रीबन हज़ार से ज्यादा वर्षो में काफी करीब आ गया है।दोनों धर्मो में ऐसे पवित्र महीने आते है।समय अलग अलग है।हम माघ महीने में कल्पवास संगम नगरी में करते है और पूर्ण व्रत नियम संयम पालन करते है।शुद्धि होती है।ऐसे ही मुस्लिम समाज रमज़ान जा महीना मनाते है।मुस्लिम कैलेंडर में भी बारह महीने होते है।मुस्लिम पंचांग हिज़री कहलाता है।हिजरी या इस्लामी पंचांग को (अरबी: अत-तक्वीम-हिज़री / फारसी:‎'तकवीम-ए-हिज़री-ये-क़मरी' ) जिसे हिजरी कालदर्शक भी कहते हैं, एक चंद्र कालदर्शक है, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में प्रयोग होता है बल्कि इसे पूरे विश्व के मुस्लिम भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए प्रयोग करते हैं। यह चंद्र-कालदर्शक है, जिसमें वर्ष में बारह मास, एवं 354 या 355 दिवस होते हैं। क्योंकि यह सौर कालदर्शक से 11 दिवस छोटा है इसलिए इस्लामी धार्मिक तिथियाँ, जो कि इस कालदर्शक के अनुसार स्थिर तिथियों पर होतीं हैं, परंतु हर वर्ष पिछले सौर कालदर्शक से 11 दिन पीछे हो जाती हैं। इसे हिज्रा या हिज्री भी कहते हैं, क्योंकि इसका पहला वर्ष वह वर्ष है जिसमें कि हज़रत मुहम्मद की मक्का शहर से मदीना की ओर हिज्ऱत (प्रवास) हुई थी। हर वर्ष के साथ वर्ष संख्या के बाद में H जो हिज्र को संदर्भित करता है या AH (लैटिनः अन्नो हेजिरी (हिज्र के वर्ष में) लगाया जाता है।हिज्र से पहले के कुछ वर्ष (BH) का प्रयोग इस्लामिक इतिहास से संबंधित घटनाओं के संदर्भ मे किया जाता है, जैसे मुहम्म्द साहिब का जन्म लिए 53 BH।वर्तमान हिज्री़ वर्ष है 1430 AH.
इस्लामी कैलेंडर के महीने 
1.मुहरम 2.सफ़र
3.रबी अल-अव्वल 4.रबी अल-थानी
5.जमाद अल-अव्वल 6.जमाद अल-थानी
7.रज्जब 8.शआबान 9. *रमजा़न* 
10.शव्वाल 11.ज़ु अल-क़ादा
12.ज़ु अल-हज्जा
रमजान नौवां महीना है। इस महीने में कुरान का अवतरण माना जाता है।रमजान एक अरेबिक शब्द है। ये अरेबिक के रमीदा और रमद शब्द से मिलकर बना है। इसका मतलब चिलचिलाती गर्मी और सूखापन होता है।महीना उसके मौसमी मिज़ाज़ के नाम पे है।
ये महीना मुस्लिम समाज मे बहुत अहम है और बहुत धर्मिक अनुष्ठान किये जाते है..
महीने भर के रोज़े (उपवास) रखे जाते है।रात में तरावीह की नमाज़ पढ़ी जाती है।क़ुरान तिलावत (पारायण) किया जाता है।एतेकाफ़ बैठना, यानी गांव और लोगों की अभ्युन्नती व कल्याण के लिये अल्लाह से दुआ (प्रार्थना) करते हुए मौन व्रत रखा जाता है।ज़कात दी जाती है।
दान धर्म निभाया जाता है 
अल्लाह का शुक्र अदा किया जाता है। अल्लाह का शुक्र अदा करते हुए इस महीने के गुज़रने के बाद शव्वाल की पहली तारीख को ईद उल-फ़ित्र मनाते हैं।
मुसलमानों के विश्वास के अनुसार इस महीने की 27 वीं रात शब-ए-क़द्र को क़ुरान का नुज़ूल (अवतरण) हुआ। इसी लिये, इस महीने में क़ुरान ज़्यादा पढना पुण्यकार्य माना जाता है। तरावीह की नमाज़ में महीना भर कुरान का पठन किया जाता है। जिस से क़ुरान पढना न आने वालों को क़ुरान सुनने का अवसर ज़रूर मिलता है।
रमजान का महीना कभी 29 दिन का तो कभी 30 दिन का होता है। इस महीने में उपवास रखते हैं। उपवास को अरबी में "सौम", इसी लिये इस मास को अरबी में माह-ए-सियाम भी कहते हैं। फ़ारसी में उपवास को रोज़ा कहते हैं। भारत के मुसलिम समुदाय पर फ़ारसी प्रभाव ज़्यादा होने के कारण उपवास को फ़ारसी शब्द ही उपयोग किया जाता है।
उपवास के दिन सूर्योदय से पहले कुछ खालेते हैं जिसे सहरी कहते हैं। दिन भर न कुछ खाते हैं न पीते हैं। शाम को सूर्यास्तमय के बाद रोज़ा खोल कर खाते हैं जिसे इफ़्तारी कहते हैं।
रमजान को नेकियों या पुन्यकार्यों का मौसम भी कहा जाता है। इस महीने में मुस्लमान अल्लाह की इबादत (उपासना) ज्यादा करता है। 
यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद बंदों के साथ हमदर्दी का है। इस महीने में रोजादार को इफ्तार कराने वाले के गुनाह माफ हो जाते हैं। पैगम्बर मोहम्मद सल्ल से आपके किसी सहाबी  ने पूछा- अगर हममें से किसी के पास इतनी गुंजाइश न हो क्या करें। तो हज़रात मुहम्मद ने जवाब दिया कि एक खजूर या पानी से ही इफ्तार करा दिया जाए।
यह महीना मुस्तहिक लोगों की मदद करने का महीना है। रमजान के तअल्लुक से हमें बेशुमार हदीसें मिलती हैं।  
जब अल्लाह की राह में देने की बात आती है तो हमें कंजूसी नहीं करना चाहिए। अल्लाह की राह में खर्च करना अफज़ल है। ग़रीब चाहे वह अन्य धर्म के क्यों न हो, उनकी मदद करने की शिक्षा दी गयी है। दूसरों के काम आना भी एक इबादत समझी जाती है।
ज़कात, सदक़ा, फित्रा, खैर खैरात, ग़रीबों की मदद, दोस्त अहबाब में जो ज़रुरतमंद हैं उनकी मदद करना ज़रूरी समझा और माना जाता है।
अपनी ज़रूरीयात को कम करना और दूसरों की ज़रूरीयात को पूरा करना अपने गुनाहों को कम और नेकियों को ज़्यादा कर देता है।
मोहम्मद सल्ल ने फरमाया है जो शख्स नमाज के रोजे ईमान और एहतेसाब (अपने जायजे के साथ) रखे उसके सब पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएँगे। रोजा हमें जब्ते नफ्स (खुद पर काबू रखने) की तरबियत देता है। हममें परहेजगारी पैदा करता है। लेकिन अब जैसे ही माहे रमजान आने वाला होता है, लोगों के जहन में तरह-तरह के चटपटे और मजेदार खाने का तसव्वुर आ जाता है।ये इस महीने की खूबसूरती है।
ये महीना इस साल मुसीबतों भरा तो है पर संयम की मिसाल लिए भी है।हर धर्म की खूबसूरती जानने से हमारे अंदर सुखद सकारत्मक ऊर्जा का संचार बना रहता है।जो हमे प्रेम शान्तिं की और ले जाता है।बस ढूढ़ने की जरूरत होती है।मेरे सभी मुस्लिम भाई बहनों मित्रो को रमज़ान के पवित्र माह की बहुत बहुत बधाई। अल्लाह आप को और आप के परिवार को खुशियों से भर सेहत से नवाजे।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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Comments

  1. Wow, what an explanation, I am sure even 99%muslims including their dharan guru would not be aware of it. This is is called Ganga jamuni tehjib. Lage raho Rajiv Bhai

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