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प्रकाश -छटते अंधकार।

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अंधकार हमेशा ही एक खास डर लिए रहा है।डर के साथ ही भीतरी चेतना को डर के दामन में धकेलने का काम भी कर देता है।फिर प्रकाश होता है।डर अचानक भाग जाता है।ये छोटा सा काम किसी भी रात जब आप अकेले हो तो अपने घर कर के देख सकते है।प्रकाश की किरण तुरन्त भीतरी चेतना को विश्वास से भर बाहर ले आती है।आप शांत महसूस करते है। प्रकाश वह है जिसके भीतर पड़कर चीजें दिखाई पड़ती हैं । वह जिसके द्वारा वस्तुओं का रूप नेत्रों को गोचर होता है । दीप्ति । आभा । आलोक । ज्योति । चमक । तेज । सब प्रकाश के स्रोत्र है या प्रकार है। वैज्ञानिकों के अनुसार जिस प्रकार ताप (ऊष्मा) शक्ति का एक रूप है उसी प्रकार प्रकाश भी । प्रकाश कोई द्रव्य नहीं है जिसमें गुणत्व हो । प्रकाश पड़ने पर भी किसी वस्तु की उतनी ही तोल रहेगी जितनी अँधेरे में थी । प्रकाश के संबंध में  वैज्ञानिकों का यह सिद्धांत ( विद्युच्चुंबकीय सिदधांत) है कि प्रकाश एक प्रकार की तरंगवत् गति है जो किसी ज्योतिष्मान् पदार्थ के द्वारा ईथर या आकाशद्रव्य में उत्पन्न होती है और चारों ओर बढ़ती है । इसी से जुड़ी मेरी कुछ आध्यत्मिक बाते है।मेरा जन्म पंजाब के एक गांव में हुआ।परन्तु ज्यादा समय रह नही सका।गांव में बिजली मेरे जन्म के बाद ही आयी जब भाखड़ा डैम से उत्पादन शुरू हुआ।उस समय तक घर मे रात को प्रकाश बत्ती वाले काले दीये से होता था। उसकी लो कम ज्यादा की जा सकती थी।कुछ बातों का मुझे संस्मरण है जो बातें मुझे कुछ बड़ा होने पे बताई गई।मैं रात को जब दीया जल जाता था तो लो के साथ हंस के खेलता था।मंजे पे ही लो को देख कर किलकारी मारता और हाथ पैर चलाता था।फिर लो धीमी होती और धीरे से बंद कर दी जाती और मैं भी सौ जाता। इससे मुझे प्रकाश का जीवन मे महत्व समझ आया।प्रकाश चेतना और ज्ञान का घोतक है।प्रकाश के आते ही अंधेरा हटता है और हम जो अंधेरे में नही देख सकते साफ नजर आता है या आने लगता है।हमारी इन्द्रिय पूर्ण जागृत हो उठती है। शरीर ऊर्जावान होता है।प्रकृति सृजन करने लगती है।जीवन चक्र चल पड़ता है।यहीं से अग्नि के ज्ञान को जाना।यहीं से हमने प्रकाश को गुरु संज्ञा देनी शुरू की।अग्नि प्रकाश जीवन मे कई संज्ञाओं के साथ हमारा अभिन्न हिस्सा हो गयी।हर कोम में इसका महत्व पैदा होने से मरने तक के सफर में किसी न किसी रूप में विश्वभर में प्रचलित हुआ। अग्नि से उपजे प्रकाश पुंज ने ज्ञान के द्वार खोल मनुष्य के लिये प्रगति की राह दिखाई। ये खुशी गम और श्रद्धा में हमारे जीवन का अंग बन गया।जीवन दर्शन ज्ञानी का अवतरण प्रकाश से जुड़ा। राजा का स्वागत दीयों के प्रकाश से हुआ।और मरण के समय भी अग्नि के ताप में समाहित हो गये या कब्र मजार पे दीये और मोमबती लगा दिये। प्रकाश में महत्व को समझ हमने ये जान लिया कब प्रकाश को किस रूप में प्रस्तुत किया जाये।और हमने प्रकाश को जन्म से मरण तक के हर कर्म में अपना साथी बना लिया। शोक में भी ज्ञान प्रकाश जीवन  को राह दिखाता है और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। खुशी में उन्हें संजोये रखने की दृष्टि देता है।बस कब कैसे किस स्थिति में देश काल समय पे इसे किस रूप में प्रस्तुत कर अपने कोन से अंधेरे मिटाने होते है ये हमे तह करना है।खुशी के दिये जलाने है या विकट काल में राह देखनी दिखानी है या हमे इसके माध्यम से एक अलख जगाये रखनी है।प्रकाश हर रूप में हमे चेतन अवस्था मे रख ज्ञान की और ले जाता है।हमे दूसरे के दुख को समझने की नज़र प्रदान करता है।उस दुख में दुखभागी को राह दिखकर होंसला देने का काम करता है। जंगल मे ये सबसे बेहतरीन सुरक्षा कवच भी है।प्रकाश में बिना जीवन डर के साये में सृजनहीन है। जीवन के हर अंधियारे का नाश प्रकाश है।मेरे मन के ज्ञान का दीपक प्रकाश है।मेरे बहुत से प्रश्नों का उत्तर ये प्रकाश है।ये प्रकृति में सूर्य से लेकर धरती के हर कण में विद्यमान है।ये ही मेरा नज़रो को खोलता मुझे जीवन ज्ञान देता और ये ही ज्ञान का दीया मेरे भीतर प्रकाशमान है। दीपक की  महत्ता छटते अंधेरे से ही है।अंधेरा किसी रूप में हो।हमे प्रकाश को समझने की आवश्यकता है।प्रकाश केवल हर्ष और उल्हास तक सीमित नही है। जिसकी बुद्धि में ज्ञान का प्रकाश है उसकी दीवाली रोज ही है।समझो तो वेदना में भी दीपक है और हर्ष में भी दीपक है।प्रकाश बराबर एक ही देता है।हम समझने की गलती हर बार कर देते है वेदना  हर्ष और उल्हास में शायद भेद न जान किसी की वेदना बढ़ा देते है अपना हर्ष  मना लेते है।प्रकाश को समझना बचपन से सिखाया जाता है मगर हम उसे मात्र दीया मोमबत्ती लड़ी समझ उसमे छिपे भेद भूल जाते है।ज्ञान की और अग्रसर रहे एक सोच में न बंधे।आप सब पे खूब जीवन का अलौकिक प्रकाश बरसे और जीवन मे प्रकाश के हर महत्व को आप समझे ऐसी मेरी कामना रहेगी।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
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