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आत्मसम्मान बहुत बहुमूल्य चीज़ है।इसे सदा बरकरार रखना चाहिए। येही अपना जीवन आधार है। ये आप के भीतर की मजबूती है।जो आप को सदा हर परिस्तिथि में मजबूत रखता है। आत्मसम्मान आप के भीतर संचारित सकरात्मक ऊर्जा का प्रभाव है। जो किसी भी कीमत पे आपको बाहरी दबाबों के आगे झुकने नही देता। नकात्मकता को हावी होने नही देता। समझौतों में उलझती जिंदगी को बाहर निकाल ले जाता है। उन्मुक्तता का एहसास कराता है। हर व्यक्ति के भीतर आत्मसम्मान का अंश होता है। कुछ इसे परस्थितियों के हवाले कर डालते है और खो देते है।महाभारत में इसका उलेख कुछ इस तरह से है।
तूर्णं सम्भावयात्मानम्।
शीघ्र अपने आप को सम्मान का भागी बनाओ।
नात्मावमन्तव्य: पूर्वाभिरसमृद्धिभि:।
कभी निर्धन थे, इस कारण अपने आप को तुच्छ न समझें।
न ह्यात्मपरिभूतस्य भूतिर्भवति शोभना।
जो स्वयं अपना ही अनादर करता है उसे समुचित वैभव प्राप्त नहीं होता।
कुरु सत्त्वं च मानं च विद्धि पौरुषमात्मन:।
आत्मसम्मान और बल को प्रकट कर, अपने पौरुष (वीरता) को पहचान
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
अपने आप अपना उद्धार करें, अवसाद में न डूबें।
आत्मप्रत्ययकोशस्य वसुदैव वसुन्धरा।
जिसके पास आत्मविश्वास का धन है, उसको पृथ्वी भी धन देती है।
ये शब्द आत्मसम्मान के बारे मे पूर्ण भाव देते है।समझ अनुसार इसे समझ सकते है।
डॉ सुचित्रा त्रिवेदी का लिखा एक सुंदर लेख मिला पढ़ने को सोचा आप से भी सांझा कर लूं इसे।
आत्मसम्मान एक सफल सुखी जीवन का आधारभूत तत्व है। व्यक्ति आत्मसम्मान के अभाव में सफल तो हो सकता है, बाह्य उपलब्धियों भरा जीवन भी सकता है, किंतु वह अंदर से भी सुखी, संतुष्ट और संतृप्त होगा, यह संभव नहीं है। आत्मसम्मान के अभाव में जीवन एक गंभीर अपूर्णता व रिक्तता से भरा रहता है। यह रिक्तता एक गहरी कमी का अहसास देती है और जीवन एक अनजानी- रिक्तता, एक अज्ञात पीड़ा, असुरक्षा और अशांति से बेचैन रहता है। आत्मसम्मान का बाहरी उपलब्धियों और सफलताओं से बहुत अधिक लेना-देना नहीं है। आत्मविश्वास स्वयं की सहज स्वीकृति, स्व-प्रेम और स्व-सम्मान की व्यक्तिगत अनुभूति है, जो दूसरों की प्रशंसा, निंदा और मूल्यांकन आदि से स्वतंत्र है। वस्तुत: आत्मविश्वास व्यक्ति का अपनी नजरों में अपना मूल्यांकन है और अपनी मौलिक अद्वितीयता की आंतरिक समझ और इसकी गौरवपूर्ण अनुभूति है। यह अपने साथ एक सहजता का स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण भाव है, जो जीवन के हर क्षेत्र में हमारी गुणवत्ता को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। वस्तुत: जीवन में सफलता और प्रसन्नता की अनुभूति का आधार आत्मसम्मान और आत्मगौरव की स्वस्थ भावदशा ही है। आत्मसम्मान की कमी का प्रमुख कारण जीवन के नकारात्मक पक्ष से गहन तादात्म्य की स्थिति होती है। भ्रमवश इसी पक्ष को हम अपना वास्तविक स्वरूप मान बैठते हैं, जबकि यह तो व्यक्तित्व का मात्र एक पक्ष होता है। वास्तविक रूप तो हमारा उच्चतर 'स्व' है, जो ईश्वर का दिव्य अंश है। आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास का प्रथम सूत्र है।
इसके साथ अपने जीवन के प्रति पूर्ण जिम्मेदारी का भाव दूसरा चरण है। आत्म-विकास और उन्नति के साथ दूसरों के सुख-दुख में भागीदारी हमारे आत्मसम्मान को बढ़ाएगी। दूसरे के सुख और उत्कर्ष में प्रशंसा, वहीं दुख व विषम समय में सांत्वना-सहानुभूति का सच्चा भाव भी आत्मसम्मान को बढ़ाने का अचूक तरीका है। अपनी अंतरात्मा की आवाज का अनुसरण करें। अपने सत्य के साथ किसी तरह का समझौता न करें। वस्तुत: आत्मसम्मान का यथार्थ विकास इसी बिंदु पर शुरू होता है। देह की वासना, मन की तृष्णा और अहं की क्षुद्रता को पैरों तले रौंदते हुए जब हम अंतरात्मा के पक्ष में निर्णय लेते हैं, तो हमारा आत्मसम्मान हमारे व्यक्तित्व को आत्मगौरव की एक नई चमक देता है।
कुल मिला कर सफल खुशहाल जीवन का आधार है।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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