🌹🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🇮🇳🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺✍️🌹
आज का दिन शुभदिन है। सुबह से ही गुरुओं के आशीर्वाद का एहसास होने लगा।आज मैंने अपने हर गुरु को जिन्होंने मुझे बचपन से आज़तक ज्ञान का भागी बनाया सब को दिल से प्रणाम किया। स्कूल आंखों के सामने आ गया।गाँव के स्कूल से आंगनवाड़ी के रास्ते शहर के स्कूल का सारा वक़्त एकदम जीवंत हो उठा। सब गुरुओं को आंख बंद कर उनकी तस्वीर को आंखों में उतारा और प्रणाम किया। पूर्णिमा को चाँद पूरा जवान होता है।अपनी रोशनी से हर अंधियारे को हर लेता है। गुरु भी चाँद की ठंडी रोशनी सा मेरे सारे अंधियारे हर्ता है।सनातन धर्म मे इसकी बहुत महत्ता है।आज के दिन को जानने से इसकी गहराई और धर्म की निष्ठा को समझा जा सकता है।हमारे देश में गुरूओं का बहुत सम्मान किया जाता है। क्योंकि एक गुरु ही है जो अपने शिष्य को गलत मार्ग से हटाकर सही रास्ते पर लाता है। पौराणिक काल से संबंधित ऐसी बहुत सी कथाएं सुनने को मिलती है जिससे ये पता चलता है कि किसी भी व्यक्ति को महान बनाने में गुरु का विशेष योगदान रहा है। इस दिन को मनाने के पीछे का एक कारण ये भी माना जाता है कि इस दिन महान गुरु महर्षि वेदव्यास जिन्होंने ब्रह्मसूत्र, महाभारत, श्रीमद्भागवत और अट्ठारह पुराण जैसे अद्भुत साहित्यों की रचना की उनका जन्म हुआ था। शास्त्रों में आषाढ़ी पूर्णिमा को वेदव्यास का जन्म समय माना जाता है। इसलिए आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। और इस साल गुरू पूर्णिमा 05 जुलाई को मनाया जा रहा है। इस दिन सभी शिष्य अपने-अपने गुरूओं का आशीर्वाद लेते हैं और उन्होंने अब तक जो कुछ भी दिया है उसके लिए धन्यवाद करते हैं। और गुरु के शिष्य होने के लिये भी बहुत यत्न है ऐसा वेदों में वर्णित है।जो कोई भी विद्यार्थी विद्या प्राप्ति की इच्छा से किसी गुरु के सानिद्ध्य में रहता हुआ नियम- अनुशासन का अनुकरण करके गुरु जनों की आज्ञाओं का पालन करता है और अनेक प्रकार की विद्याओं को प्राप्त करता है और जीवन को आदर्शमय बनता है, वास्तव में वह शिष्य कहलाने योग्य है । वैसे तो अनेक प्रकार के धर्म-शास्त्रों में नीति-शास्त्रों में शिष्यों के लिए कर्तव्यों के निर्देश किये गए हैं परन्तु वेदों में भी अनेक प्रकार के निर्देश प्राप्त होते हैं और जो कुछ भी अन्य शास्त्रों में उपलब्ध होते हैं । तो हमे उन सबका मूल वेदों से ही समझना चाहिये । वेदों में इसका विस्तृत उल्लेख मिलता है।
ऋग्वेद और अथर्ववेद आदि में शिष्य के कुछ गुणों का उल्लेख किया गया है । इन गुणों से युक्त विद्यार्थी ही शिक्षा प्राप्ति के अधिकारी होते थे ।
प्रवेश परीक्षा - अथर्ववेद में उल्लेख है कि "आचार्य उपनयमानो ब्रह्मचारिणं इच्छते ...तं रात्रिस्तिस्र उदरे बिभर्ति...।" आचार्य प्रवेश से पूर्व विद्यार्थी को तीन दिन परिक्षण में रखता था । जो विद्यार्थी उस कठोर परीक्षण में उत्तीर्ण होते थे, उन्हें ही प्रवेश दिया जाता था और उनका उपनयन संस्कार किया जाता था । मन्त्र में तीन दिन के लिए तीन रात्रि का प्रयोग आया है।
छात्र जिज्ञासु हो - ऋग्वेद का कथन है कि "तान् उशतो वि बोधय..।" अर्थात् जो व्यक्ति जिज्ञासु होते हैं और वेदादि का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें ही शिक्षा देनी चाहिये ।
शिष्य कर्मठ हो - "अप्नस्वती मम धीरस्तु ।" विद्यार्थी या शिष्य को कर्मठ होना आवश्यक है । शिष्य तीव्र बुद्धि वाला हो - जिसकी बुद्धि जितनी तीव्र व सक्रिय होती है वही ज्ञान का अधिकारी होता है, वही ज्ञान ग्रहण करने में समर्थ हो पाता है अतः ऋग्वेद का कथन है कि "शिक्षेयमस्मै दित्सेयम्...।" अर्थात् गुरु उसी विद्यार्थी को उच्च शिक्षा प्रदान करना चाहता है जिसकी बुद्धि तीव्र हो ।
इसके अतिरिक्त विद्यार्थी को गुरु जी के अनुशासन में रहते हुए गुरूजी के आज्ञाकारी होना चाहिये । गुरूजी के आज्ञा के विपरीत या गुरु जी का कोई अप्रिय आचरण कभी भी न करे । गुरु जी के प्रति सदा श्रद्धा भाव रखने वाला तथा अन्तर्मन से गुरु जी की सेवा करने वाला होना चाहिये ।
इस प्रकार विद्यार्थी के कुछ कर्तव्य भी होते हैं जो कि वेदों में विस्तृत रूप में वर्णित है । विद्यार्थी अपने जीवन को वेदानुकुल ही बनाने का प्रयत्न करे । अथर्ववेद का निर्देश है कि विद्यार्थी वेदों के आदेशों के अनुसार ही अपना जीवन व्यतीत करे । ऐसा कोई भी कार्य न करे जो कि वेदों में निषेध किया गया हो ।
ऋग्वेद में बताया गया है कि "विश्वान देवान उषर्बुध.." अर्थात् विद्यार्थी का कर्तव्य है कि उस को प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में ही शय्यात्याग करना चाहिये । जो प्रातःकाल शीघ्र ही उठता है वह स्वस्थ, बलवान, दीर्घायु होता है ।
विद्यार्थी को चाहिए कि उसको कभी भी आलस्य, प्रमाद और वाचालता आदि से युक्त न होना चाहिये । उसको सदा संयमी और सदाचारी होना चाहिए । इस प्रकार जब हम वेदों का अध्ययन करते हैं तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य है, किन-किन गुणों से युक्त होना चाहिए और किन-किन गुणों से रहित होना चाहिए यह सब बातें विस्तृत रूप में वर्णित है । अतः हमारा कर्तव्य है कि इन ईश्वर प्रदत्त निर्देशों का अच्छी प्रकार अनुसरण करके अपने जीवन को सुख-शान्ति से युक्त करें और एक आदर्श व्यक्ति बनने का प्रयत्न करें । गुरु हमे सही मार्ग पे ले जा वांछित तरक्की करवाते है।जीवन की मजबूत नींव रखते है। नियम से जिये जाने वाले जीवन की कला सिखलाते है। अब शिष्य कितना गुणवान है ये उसके कर्तव्य और कार्यों के प्रति समर्पण से समझा जा सकता है।
हमारा धर्म और समाज बहुत विस्तृत और मजबूत है।देश ही नही दुनिया को भी जीने की राह दिखाता है।समाज से देश बना और ये देश अपने गूढ़ ज्ञान से विश्व गुरु बनने की सारी काबलियत रखता है। इसी के साथ एक शिष्य का सभी गुरुओं को शत शत नमन।
जय गुरु देव
जय हिन्द।
****🙏****✍️
शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌹🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
Comments
Post a Comment