🌹🙏❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🇮🇳❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹✍️
बिहार सांस्कृतिक रूप से बहुत समृद्ध राज्य है। यहां का आमजन मेहनती और जागृत और ज्ञानी है।इसकी गवाह हमारी आज़ादी का संघर्ष भी है।आजकल त्यौहारों के दिन चल रहे है तो बिहार का सबसे ज्यादा हर्षोउल्लास से मनाया जाने वाला त्यौहार कैसे भूल सकते है। छठ पर्व।आज इसी पे आनंद चर्चा हो जाये।
ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में मान्यता है कि छठ देवी सूर्यदेव की बहन हैं। इसलिए छठ पर छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए सूर्य देव को प्रसन्न किया जाता है। इसे गंगा-यमुना या किसी भी नदी, सरोवर के तट पर सूर्यदेव की आराधना की जाती है।
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पूजा मनाई जाती है।यह पर्व चार दिन तक चलता है ।छठ पूजा को सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है।सूर्य देव के साथ इस दिन देवी षष्ठी की भी पूजा की जाती है।इस व्रत को संतान प्राप्ति की इच्छा से रखा जाता है। छठी माता बच्चों की रक्षा करती है ऐसी मान्यता है।
इससे जुड़ी कुछ कथायें कहता हूँ।
प्राचीन काल से ही छठ पूजा का विशेष महत्व रहा है। इसका आरंभ महाभारत काल में कुंती ने किया था ऐसी मान्यता है। सूर्य की आराधना से ही कुंती को पुत्र कर्ण की प्राप्ति हुई थी। इसके बाद कुंती पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की, वह भगवान सूर्य का परम भक्त था, प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा पाकर ही वह आगे चलकर महान योद्धा और दानी बना। इसलिए आज भी छठ पूजा में अर्घ्य दान की पद्धति प्रचलित है।
वहीं दूसरी ओर पांडवों की पत्नी द्रौपदी को भी नित्य सूर्य की पूजा करने के लिए जाना जाता है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य देव की पूजा किया करती थी। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। इस छठ के व्रत से द्रौपदी की सभी मनोकामनाएं पूरी हुईं साथ ही पांडवों को राजपाट भी वापस मिल गया।
एक लोकमत अनुसार छठ पर्व का रामायण में भी उल्लेख किया गया है। लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया था और भगवान सूर्यदेव की आराधना की थी, जिससे सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर उन्होंने सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
अब इसकी सबसे प्रचलित कथा कहता हूं-
छठ पूजा की कथा इस प्रकार से है-
एक राजा के उनका नाम था प्रियव्रत ।उनकी पत्नी थी जिसका नाम मालिनी था।राजा रानी बेहद दुखी रहते थे क्योंकि उनके कोई संतान ना थी।एक दिन उन्होंने महर्षि कश्यप द्वारा संतान प्राप्ति की इच्छा से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के प्रभाव से रानी मालिनी गर्भवती हुई और उन्होंने नौ महीने बाद एक बालक को जन्म दिया, परंतु वह बालक मृत पैदा हुआ।
जिस कारण राजा प्रियव्रत अत्यंत दुखी हुए और उन्होंने संतान दुख के कारण आत्महत्या का विचार कर लिया ,लेकिन जैसे ही राजा प्रियव्रत ने आत्महत्या करने की कोशिश करी उसी समय एक सुंदर देवी वहां पर उनके सामने प्रकट हुई ।उस देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा “हे राजन मैं षष्ठी देवी हूं।मेरी आराधना करके लोगों को पुत्र की प्राप्ति होती है, मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं और जो भक्त सच्चे मन से मेरी पूजा करते हैं मैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हूं ,यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें भी पुत्र रत्न प्रदान करूंगी।राजा प्रियव्रत ने देवी षष्ठी की आज्ञा को मानकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की तिथि को देवी षष्ठी की पूजा की और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और तभी से छठ पूजा का उत्सव मनाया जाने लगा ।
लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मैया का संबंध भाई -बहन का है ।एंव लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी।स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं और पारिवारिक सुख- समृद्धि तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति करते हैं।
छठ पूजा भैया दूज के तीसरे दिन से आरंभ हो जाती है ।यह पर्व चार दिन का होता है।इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है।यह व्रत निराहार और निराजल रखा जाता है।
आइये जाने कैसे मनाते है इसे।
नहाय खाय--
इस व्रत का पहला दिन नहाए खाए के रूप में मनाया जाता है।इस दिन घर की साफ-सफाई करी जाती है। इसके पश्चात स्नान कर शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं ।जो व्यक्ति व्रत रखता है उसके भोजन करने के उपरांत ही घर के समस्त सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।भोजन के रूप में कद्दू,चने की दाल और चावल ग्रहण किए जाते हैं।
खरना---
छठ व्रत का दूसरा दिन लोहंडा और खरना के नाम से जाना जाता है। कार्तिक शुक्ल पंचमी को दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन किया जाता है। इस दिन अपने आस-पड़ोस और मित्र संबंधी और पारिवारिक लोगों को प्रसाद ग्रहण करने के लिए निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में इस दिन गन्ने के रस से बनी हुई खीर के साथ दूध ,चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है।इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता।
संध्या अर्घ्य--
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ का प्रसाद बनाया जाता है ।प्रसाद के रूप में ठेकुआ चावल के लड्डू बनाए जाते हैं। शाम को पूरी तैयारी के साथ बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता हैऔर परिवार के समस्त जन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैंऔर नदी के किनारे इकट्ठे होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है और छठी मैया की प्रसाद से भरे सूप से पूजा की जाती है। यह दृश्य बेहद ही सुंदर और मनोहर होता है।
उषा अर्घ्य--
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उदय सूर्य को अर्ध्य दिया जाता है। सारे व्रति वही इकट्ठे होते हैं जहां पर उन्होंने पूर्व संध्या को अर्ध दिया था और एक बार फिर उन्हें पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृति होती है और सभी श्रद्धालु अपने घर वापस आते हैं। और गांव के पीपल के पेड़ जिसको ब्रहम बाबा कहते हैं वहां जा कर पूजा करते हैं। पूजा के पश्चात कच्चे दूध का शरबत पीकर और प्रसाद खाकर व्रत को पूर्ण करते हैं जिसे परना कहते हैं।
छठ पूजा भारत के कई हिस्सों में खासकर के पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में महापर्व के रूप में मनाई जाती है इस व्रत में शुद्धता, स्वच्छता ,पवित्रता का ध्यान खास तौर पर रखा जाता है और छठ माता की पूजा करके संतान की रक्षा का वर मांगा जाता है।
आप सब को इस महापर्व पर बधाई।
जय हिंद।
****🙏****✍️
सुप्रभात।
"निर्गुणी"
❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️🌹❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️
🙏🙏🙏 jai shashti maiya
ReplyDelete