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कार्तिक माह विशेष- देव ऋषी नारद अवतार।

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 नारायण नारायण पाठको आज आनंद चर्चा भगवान् विष्णु के सबसे चंचल अवतार नारद मुनि के बारे में हो जाये। 
आम तौर पे यदि कोई दो लोगों के बीच लड़ाई कराये तो उसे 'नारद मुनी' की उपाधी दी जाती हे। विष्णु पुराण के एक आनंदमय श्लोक के अनुसार "नरम नर समूहाँ कालहेना ध्यति खण्डयाटीत" जिसका मतलब हे की जो दो लोगों के बीच कलह करवाये वा नारद हे। लेकिन नारद जी की नीयत हमेशा साफ होती हे। वो जो कुछ भी करते हैं प्रभु की इच्छा अनुसार ही करते हैं, कभी बदले की भावना या कभी किसी को नुकसान पहुंचाने की भावना से नहीं।उनका दायें हाथ में वीणा, बाएं हाथ में खड़ताल, गले में पुष्प माला, चरणों में पवन पादुका, मुख पर मुस्कान, के साथ “नारायण नारायण” का जाप करते हुए अलौकिक आभा वाले देवर्षि नारद जी  का वर्णन सनातन धर्म के हर युग के अधिकांश धर्मग्रंथों में मिलता है।सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार नारद मुनि भी भगवान् विष्णु के अवतार थे इसका वर्णन  श्रीमद्भागवतगीता के दसवें अध्याय में स्वयं श्री कृष्ण जी ने किया है | 26वें श्लोक में श्रीकृष्ण जी ने कहा है 

अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम् देवार्शिणाम् च नारदः |
गन्धर्वाणाम् चित्ररथः सिद्धानाम् कपिलो मुनिः||

अर्थात मैं सब बृक्षों में पीपल का वृक्ष, देवर्षियों में नारद मुनि | गन्धर्वों में चित्ररथ और सिद्धों में कपिल मुनि हूँ ||

नारद मुनि ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्रों में से एक थे और भगवान् विष्णु के तीसरे अवतार थे, जो ब्रह्मा के कंठ से पैदा हुए थे | लोक कल्याण और धर्म के प्रचार पसार के लिए भगवान् विष्णु नारद मुनि के रूप में अवतरित हुए थे | वायुपुराण के अनुसार धर्म के पुत्र नर एवम् नारायण, कृत के पुत्र बालखिल्यगण, पुलह के पुत्र कर्दम, पुल्सत्य के पुत्र कुबेर, प्रत्युष के पुत्र अचल, कश्यप के पुत्र नारद और पर्वत देवर्षि माने गये |अधिकांश जन मानस में देवर्षि नारद ही देवर्षि के रूप में प्रसिद्ध हैं क्यूंकि अत्यंत कठिन तप और कठोर परिश्रम के पश्चात नारद जी ने देवर्षि का पद प्राप्त किया था, महाभारत के अनुसार देवर्षि नारद वेदों उपनिषदों के ज्ञाता, पुराणों के विशेषज्ञ, अतीत की बातों को जानने वाले, न्याय एवं धर्म के पालनकर्ता, शिक्षा, व्याकरण, विज्ञान, आयुर्वेद के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी नीतिज्ञ, उच्च कोटि के कवी, महापंडित, परामर्शदाता, सद्गुणों के भंडार, आनंद के सागर, परम तेजस्वी, योग बल से समस्त लोकों का हाल जानने वाले, समस्त शास्त्रों में प्रवीण, सबके हितकारी और सर्वत्र गति वाले हैं |
देवर्षि नारद भगवान् विष्णु के परम भक्त हैं और भगवान् की अधिकांश लीलाओं में उनके सहयोगी की भूमिका में रहे | देवर्षि नारद देवतायों के तो परम पूजनीय हैं ही, साथ ही राक्षसों के भी परम पूजनीय हैं | देवर्षि नारद जी परम ज्ञानी और सर्वगुण सम्पन्न होने के कारण देवगुरु वृहस्पति जी के भी सलाहकार हैं |सनातन धर्म के इतिहास में देवर्षि नारद की एक ख़ास भूमिका रही है, देवर्षि नारद जगत के पालनकर्ता भगवान् विष्णु जी के अवतार हैं, चूँकि श्रृष्टि की स्थिरता और जीवन चक्र बनाये रखना ही भगवान् विष्णु जी का परम कर्तव्य है तो अपने कर्तव्य पालन हेतु भगवान् विष्णु जी को किसी ऐसे अवतार की आवश्यकता थी जो परम ज्ञानी होने के साथ साथ तीनों लोकों का ज्ञाता हो, और तरह तरह की लीलाएं रचने में निपुण हो। देवर्षि नारद के ऐसे व्यक्तित्व के पीछे ही श्रृष्टि का रहस्य और श्रृष्टि संचालन का रहस्य छुपा था । इसी लिए भगवान् विष्णु जी ने नारद के रूप में अवतार लिया ।
देव ऋषि नारद या नारद मुनि ब्रह्मा जी के पुत्र और भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त हैं। वह इधर की बात उधर करके, दो लोगों के बीच आग लगाने के लिये काफी प्रसिद्ध हैं। माना जाता हे की उन्हे सब खबर रहती हे की सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड मैं कहाँ क्या हो रहा हे। मुहँ पे नारायण नारायण और हाथ मैं वीणा लिये, नमक-मिर्च लगा के बातैं फैलाना और लड़ाई करवाना उनका गुर हैं। बल्कि माने तो उन्हे दुनिया का सबसे पहला पत्रकार माना गया हे।नारद मुनी का समझना आसान नहीं हे। यूं तो वे हमेशा खुश और आनन्दित दिखते हैं पर वे काफी संजीदा और विद्वान भी हैं। हिन्दू पौराणिक कथाओं की माने तो उन्होने भगवान विष्णु के कई काम पूरे किये हैं। नारद जी को विष्णु का संदेशवाहक माना गया हे। वे हमेशा तीनो लोकों मैं घूमते रेहते हैं और देव, दानव और मानव को जानकारी देते रहते हैं। शब्दकल्पद्रुमा मैं उन्हे भक्ति की बातैं बताने वाला माना गया हे "नरम परमात्मा विषयकाम ज्ञानं ददाति इति नारदः" आइये नारद मुनी से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियाँ जाने-
1.जालंधर और नारद मुनि
जालंधर नाम के राक्षस को समुद्रा ने पाला था, इसलिये लक्ष्मी जी, जो समुद्र की बेटी हैं, उनका जालंधर के प्रति भाई जैसा प्रेम था. जब जालंधर बड़ा हुआ तो वह एक अन्यायी, क्रूर और शक्तिशाली राजा बना। उसने सभी देवताओं को हरा कर स्वर्ग पर क़ब्ज़ा कर लिया। विष्णु जी, देवो लक्ष्मी के विरोध के कारण कुछ नहीं कर पा रहे थे।नारद मुनी ने जालंधर के लिये दो समस्या खड़ी कर दी। उन्होने शक्ति मैं चूर जालंधर को कहा की ना सिर्फ शिवा इस दुनिया मैं सबसे धनवान और सम्रद्ध हैं बल्कि उनकी पत्नी पर्वती भी दुनिया की सबसे सुन्दर स्त्री हैं। जालंधर पार्वती माता को शादी के लिये मानने लगा और भगवान शिव से युध् की तैय्यारी करने लगा। आखिर मैं शिव ने जालंधर को मार के दुनिया को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई।
2.नारद और त्रिदेवी
एक बार त्रिदेवी - लक्ष्मी, सरवती और पर्वती के बीच मैं अहम की लड़ाई हो गयी की कौन से माता सबसे श्रेष्ठ हे। नारद जी ने इस मौके का पुरा फायदा उठाया और हर देवी के पास जाकर दूसरी दो देवियों की बातैं बतायी। आखिर मैं नारद जी के कहने पे, अपनी शक्ति का प्रणाम देने के लिये, तीनो देवियों ने एक चमत्‍कार करने की ठानी।ज्ञान की देवी सरस्वती ने एक गूंगे-बहरे आदमी को रातों-रात विद्वान बना दिया। धन की देवी लक्ष्मी ने एक गरीब औरत को रानी बना दिया। और बल की देवी पर्वती ने एक बहुत डरपोक आदमी को बल देकर सेनापति बना दिया। थोड़ी देर मैं ही उस राज्य मैं कोहराम मच गया क्यूंकि आम जनता ने उस सेनापति के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। ऐसा इसलिये हुआ क्यूंकि उस रानी ने उस विद्वान को मृत्यु-दंड दे दिया था क्यूंकि उस विद्वान ने रानी की प्रशंसा करने के लिये माना कर दिया था। तब तीनो देवियों को एहसास हुआ की ये सब नारद जी का ही किया धरा था।
3.नारद और कंस
जैसा की हम सब जानते ही हैं, कंस एक क्रूर और निर्दयी राजा था। उसके राज मैं राक्षसों ने प्रजा का जीना दुर्भर कर रखा था। जब उसकी बहन देवकी की शादी वासुदेव के साथ हुई तो विदाई के समय एक आक्षवाणी हुई की, "हे कंस! देवकी की आठवी सन्तान ही तेरी मृत्यु का कारण बनेगी" यह सुनकर कंस ने अपना आपा खो दिया और वासुदेव को ज़ैल मैं डाल दिया पर देवकी को छोड़ दिया.
इस घटना के बाद, नारद जी कंस से गुप्त रुप से मिले और उन्होने कंस को समझाया की "हे कंस! तेरे खिलाफ सभी देवताओं ने साजिश की हे। देवकी, वासुदेव और तेरे पिता उग्रसेन सभी देवताओं के साथ हैं।" यह सुनते ही कंस क्रधित हो उठा और उसने देवकी और उग्रसेन को भी ज़ैल मैं डाल दिया।
4.ओंकारेश्वर की कहानी
नार्मदा नदी के तट के किनारे ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग हे। ऐसा कहा जाता हे की एक बार विंध्या पर्वत अपनी शक्ति और अपने कद को लेकर बहुत घमंडी हो गया। नारद जी ने उसे और उकसाया और कहा की मेरु पर्वत के सामने विंध्या पर्वत कुछ भी नहीं हे। इस बात से उत्तेजित होकर विंध्या ने शिव की तपस्या की और कहा की वे नार्मदा के तट पे शिवलिंग स्थापित कर दें।
शिवलिंग के प्रभाव से विंध्या पर्वत ने अपना कद और बढ़ा लिया, उसको हर हाल मैं मेरु पर्वत से उंचा होना था। विंध्या की उंचाई से सूर्य की ब्राह्माण्ड की परिक्रमा मैं बाधा आ गयी और आधी दुनिया अंधेरे मैं चली गयी। देवी भगवती के कहने पर ऋषि अगस्त्य विंध्या गये. विंध्या पर्वत ऋषि के आने पर सम्मान स्वरूप नीचे झुका तो ऋषि अगस्त्य ने उसे ऐसे ही रहने को कहा।
5.जब नारद जी ने प्रकट किया कृष्ण का भेद-
कंस के सामने कृष्ण और बलराम का भेद बताने वेल नारद ही थे। उन्होने ही कंस को बताया की कृष्ण और बलराम देवकी की सातवी और आठवी सन्तान हैं।
6-नारद और दुर्वासा
एक बार नारद जी कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर की सभा मैं बैठे थे। इतने मैं वहन ऋषि दुर्वासा आगये जिनके हाथ मैं बहुत सारी किताबें थी। बिना किसी और पे ध्यान दिये वे आकर शिवा के साथ बैठ गये. शिवा ने मुस्कुरा कर ऋषि से पूछा की की क्या उन्होने सारे वेद पढ़ लिये। इसपर ऋषि दुर्वासा ने गर्व से कहा की वे सभी तरह का ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं। नारद जी ने भरी सभा मैं ऋषि दुर्वासा को उस गधे समान कहा जो किताबों का बोझ लादे फिर रहा हो।
यह सुनते ही ऋषि दुर्वासा गुस्से से कांपने लगे।जिसपर नारद जी ने कहा की जो मानव अपने गुस्से पे, अपनी इन्द्रियों पे काबू नहीं पा सका उसके लिए किताबों का ज्ञान बेकार हे। दुर्वासा ने अपनी गलती मानते हुए, उन किताबों को फैंक दिया और तपस्या के लिए निकल गये।
7,.नारद और वाल्मीकि-
एक बार नारद जी घुमते हुए डाकू रत्नाकर के इलाके में पहुँचे। रत्नाकर ने उन्हें लूटने के लिये रोका। नारद जी बोले “भैया मेरे पास तो यह वीणा है, इसे ही रख लो। लेकिन एक बात तो बताओ, तुम यह पाप क्यों कर रहे हो?” रत्नाकर ने कहा,”अपने परिवार के लिये।” तब नारद जी बोले, “अच्छा, लेकिन लूटने से पहले एक सवाल जरा अपने परिवार वालों से पूछ आओ कि क्या वह भी तुम्हारे पापों में हिस्सेदार हैं?”रत्नाकर दौडे-दौडे घर पहुँचे। जवाब मिला, “हमारी देखभाल तो आपका कर्तव्य है, लेकिन हम आपके पापों में भागीदार नहीं हैं। लुटे-पिटे से रत्नाकर लौट कर नारद जी के पास आए और डाकू रत्नाकर से वाल्मीकि हो गए। बाद में उन्हें रामायण लिखने की प्रेरणा भी नारद जी से ही मिली।
8.जगत को बताई भक्ति की राह देवर्षि नारद ने-
भगवान विष्णु के 24 अवतारों में देवर्षि नारद को तीसरा अवतार माना जाता है। नारद संगीत के आचार्य माने जाते हैं। सभी जीवों का कल्याण करना, इनका संकल्प है। इसलिए जो जैसा अधिकारी है, उसे वैसा मार्ग बताते हैं। भगवान के भक्तों को भक्ति का मार्ग बताते हैं। देवता हो या राक्षस, सभी इनका सम्मान करते हैं। इनको भक्ति सूत्र का निर्माता भी कहा जाता है।
9.नारद संहिता के रचनाकार-
नारद पंचरात्रि, नारद भक्ति सूत्र, नारद परिव्राजक कोष निषध के अतिरिक्त बृहत, नारदीय पुराण का अपना अलग ही महत्व है। वे नारद संहिता के रचनाकार भी थे, जिन्होंने ज्योतिष विज्ञान के व्यवहार उपयोग पर अपने खगोलीय प्रभाव को उजागर किया तथा रचनाएं स्पष्ट की हैं। नारद भक्ति सूत्र में भक्ति को सूक्ष्म रूप में वर्णित किया गया है। नारद अवतार हमारे लिए प्रेरणास्त्रोत है जीवन में हमें भगवान की भक्ति करते हुए दायित्वों को पूरा करना का।
10.नारद जी के मंदिर-
नारद मुनि के मंदिर सभी जगह नहीं पाये जाते हैं। इनके दो विख्यात मंदिर चिगादरी और कोरवा मैं हैं। चिगादरी दावणगेरे से 50 किलोमीटर की दूरी पर हे और कोरवा कर्नाटका के राइचूर के पास हे। कोरवा कृष्णा नदी मैं एक बहुत ही सुन्दर द्वीप हे जिसे धार्मिक स्थल के रूप मैं भी देखा जाता हे। उसको नाराडगद्दे के नाम से भी जाना जाता हे।
सभी कथा वर्णनों में नारद की भूमिका लोक कल्याण की ही रही। येही ज्ञान है। नारायण नारायण।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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