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कार्तिक माह विशेष-महर्षि वेद व्यास जी।

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आज की आनंद चर्चा महाभारत जैसे महान ग्रंथ की रचना करने वाले ऋषि वेद व्यास के जीवन के बारे हो जाये। महर्षि वेद व्यास के पिता कौन थे, किन परिस्थितियों में व्यास का जन्म हुआ, उनका जीवनकाल कैसे और कहां बीता, आदि जैसे घटनाक्रम के विषय में आज इस चर्चा में आनंद लिया जाये ।
कथा का प्रारंभ ऋषि पराशर से है।विश्व के पहले पुराण, विष्णु पुराण की रचना करने वाले महर्षि पराशर एक बार यमुना नदी के किनारे भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते हुए उनकी नजर एक सुंदर स्त्री सत्यवती पर पड़ी। मछुआरे की पुत्री सत्यवती, दिखने में तो बेहद आकर्षक थी लेकिन उसकी देह से हमेशा मछली की गंध आती थी, जिसकी वजह से सत्यवती को मत्स्यगंधा भी कहा जाता था।महर्षि पराशर, सत्यवती के प्रति आकर्षित हुए बिना रह नहीं पाए। उन्होंने सत्यवती से उन्होंने नदी पार करवाने की गुजारिश की। सत्यवती ने उन्हें अपनी नाव में बैठने के लिए आमंत्रित किया।नाव में बैठने के बाद पराशर ऋषि ने सत्यवती के सामने प्रणय निवेदन किया, जिसे सत्यवती ने सशर्त स्वीकार किया। पराशर ऋषि, सत्यवती के साथ संभोग करना चाहते थे, जिसकी स्वीकृति देने से पहले सत्यवती ने उनके सामने अपनी तीन शर्तें रखी।सत्यवती की पहली शर्त थी कि उन्हें संभोग करते हुए कोई भी जीव ना देख पाए। पराशर ने इस शर्त को स्वीकार करते हुए अपनी दैवीय शक्ति से एक द्वीप का निर्माण किया जहां घना कोहरा था। इस कोहरे के भीतर कोई भी उन्हें नहीं देख सकता था।सत्यवती की दूसरी शर्त थी कि उसके शरीर से आने वाली मछली की महक के स्थान पर फूलों की सुगंध आए। पराशर ने ‘तथास्तु’ कहकर यह शर्त भी स्वीकार कर ली और सत्यवती के शरीर में से आने वाली मछली की गंध समाप्त हो गई। इसके विपरीत उसकी देह फूलों की तरह महकने लगी।तीसरी शर्त के रूप में सत्यवती ने कहा कि सहवास के बाद जब वह गर्भ धारण करेगी तो उसका पुत्र कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि महाज्ञानी होना चाहिए, ना कि एक मछुआरा। सत्यवती की यह शर्त भी पराशर ऋषि द्वारा मान ली गई। साथ ही पराशर ऋषि ने यह भी वरदान दिया कि सहवास के बाद भी उनका कौमार्य कायम रहेगा।सत्यवती और ऋषि पराशर ने कोहरे से भरे द्वीप पर संभोग किया। समय आने पर सत्यवती ने एक पुत्र को जन्म दिया, जो जन्म के साथ ही महाज्ञानी था। सत्यवती और पराशर की संतान का रंग काला था, जिसकी वजह से उसका नाम कृष्ण रखा गया। यही कृष्ण आगे चलकर वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।कृष्ण जब बड़े हुए तब उन्होंने अपनी मां से कहा कि जब भी वह किसी विपत्ति की समय उन्हें याद करेंगी, वह उपस्थित हो जाएंगे। इतना कहकर वे तप करने के लिए द्वैपायन द्वीप की ओर प्रस्थान कर गए।
अब एक प्रथा जिसने पूरी महाभारत का ही आरंभ कर दिया।मनुस्मृति में ‘नियोग’ की प्रथा को उल्लिखित किया गया है। जिसके अंतर्गत अगर पुरुष संतानोत्पत्ति करने में सक्षम नहीं है या उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है तो ऐसे हालातों में स्त्री नियोग के द्वारा किसी अन्य पुरुष के द्वारा गर्भ धारण कर सकती है।हम जानते है सत्यवती और शांतनु के दोनों पुत्रों की मृत्यु के पश्चात सत्यवती को यह भय सताने लगा कि ऐसे तो वंश समाप्त हो जाएगा। सत्यवती ने पहले भीष्म से आग्रह किया कि वह विचित्रवीर्य की रानियों के साथ नियोग कर संतान उत्पत्ति का मार्ग खोलें, लेकिन भीष्म की प्रतिज्ञा ने उन्हें अपनी माता की आज्ञा का पालन नहीं करने दिया।
सत्यवती अत्यंत निराश और दुखी हो गई। ऐसे में उन्हें अपने पुत्र वेद व्यास की याद आई। वेद व्यास ने उनसे कहा था कि वह किसी भी विपत्ति में उनका साथ देंगे। अपनी मां के कहने पर वेद व्यास ने विचित्रवीर्य की रानियों के साथ नियोग किया, जिसके बाद पांडु और धृतराष्ट्र का जन्म हुआ।
वेद व्यास ने विचित्रवीर्य की रानियों, अंबिका और अंबालिका के अलावा एक दासी के साथ भी नियोग की प्रथा का पालन किया, जिसके बाद विदुर का जन्म हुआ। तीनों पुत्रों में से विदुर वेद-वेदान्त में पारंगत और नीतिवान पुत्र थे।
महर्षि वेदव्यास जी को द्वैपायन द्वीप पर जाकर तपस्या करने और काले रंग की वजह से प्रथम कृष्ण द्वैपायन नाम दिया गया, जो आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वेद व्यास के नाम से प्रसिद्ध हुए।
वेदों का विस्तार करने के कारण ये वेदव्यास तथा बदरीवन में निवास करने के कारण बादरायण के नाम से भी जाने जाते हैं। वेद व्यास ने चारो वेदों के विस्तार के साथ-साथ अठारह महापुराणों तथा ब्रह्मसूत्र का भी प्रणयन किया। हिन्दू पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने ही व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया था।
हमारे हिन्दु धर्म की सामाजिक आधारशिला महर्षि वेद व्यास ने ही रखी। जो वैज्ञानिक आध्यत्मिक रूप से समृद्ध है। जब भी समय मिले वेदों और पुराणों का अध्यन करें। हमे अपने इतिहास पे गर्व ही होगा।
जय हिंद।
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सुप्रभात।
"निर्गुणी"
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