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बहुत समय बाद बिटिया के साथ नई सड़क जाना हुआ। स्कूल कॉलेज की यादें लौट आयी। बाजार बस कुछ बदला बदला सा लगा। जब नई किताबों के पैसे मुश्किल से जुटते थे तो दो जगह समझ आती थी। दरियागंज की रविवारीय पटरी मार्किट या फिर नयी सड़क। दोनों जगह से मैंने किताबें खरीदी और पढ़ी है। समय बीतता गया और चांदनी चौकं का इलाका व्यवसाय की उलझनों संग ही देखा जाता रहा। सालों बाद उसी तलाश में नई सड़क को फिर से देखा। एक खास जगह पुरानी किताबों की। पतली गली!जानने वाले समझ गए होंगे पतली गली की सरदार जी की दुकान की बात कर रहा हूँ। बाकी अब नई सड़क रेडी मेड कपड़ो की मार्कीट में ज्यादा तब्दील हो गयी है। पहले शायद मामला फिफ्टी फिफ्टी था। अब अस्सी बीस हो गया है। मगर नह बदली तो पटरी की चाट छोले कुलचे मूंगदाल लड्डू वाले। वहीं है वैसे ही है। कॅरोना के डर की वजह से बच्ची ने कुछ खाने ही नही दिया इस पेटू को। खैर किताबें लेने के लिये पतली गली को आंखें ढूंढ रही थीं।जैसे ही नज़र आई अंदर हो लिये। बेटी जोर से हंसी यहां कहाँ किताबें। पतली गली इतनी पतली है के एक आदमी ही आराम से निकल सकता है। खैर बोले बच्चे आओ तो सही । गली खत्म होते ही सामने सरदार जी की दुकान! अरसे बाद सरदार जी को देखा। बिटिया को परिचय करवाया अपनी यादें सुनवाई। बिटिया ने लिस्ट थमा दी। सरदार जी भी किताबों का पूरा सेट 5 मिनट में ढूंढ के ले आये। डिस्काउंट अब कम कर दिया है। हमारे समय 70 परसेंट देते थे। अब 50 ही दिया। मेरा मन भी बहुत मोल भाव का नही हुआ।शायद दुकान को देख कर। वहां नौकरी करती उस लडक़ी को देख कर। पैसे दिये किताबें लड़की ने पैक कर अच्छे से बांध दी। एक अजीब सी खुशी सकूं और तस्सली सी हुई अपनी इस यात्रा से। खैर किताबें ली और पार्किंग की और चल पड़े। अगर चांदनी चौक या पुरानी दिल्ली आना हो तो मेट्रो सब से बेहतर।मगर कोरोना के चलते अपनी गाड़ी से आये। रास्ते ने बिटिया को दरियागंज के बारे में बताया। वहां के संगीत वाद्यों की मार्किट और किताबों के प्रकाशन के बारे में बताया। गोलचा से जुड़ी यादें बताई। और फिर खारी बावली के बगल में पार्किंग में गाड़ी लगाई। अव्यवस्थाओं का जाल आज भी बरकरार है।
चलिए जाने चांदनी चौक को सरकारी नज़र से-चांदनी चौक : खरीदारी के लिए यह सबसे उपयुक्त स्थान है। भारी जनसंख्या वाला यह बाज़ार तीन शताब्दियों से अधिक समय से मौजूद है, जहां तुर्की, चीन और हॉलैण्ड तक से व्यापारी आया करते थे। यहां से आप कलाकृतियां और स्मृतिचिह्न खरीद सकते हैं। दरीबा कलां अपने मोतियों, सोने और चांदी के आभूषणों तथा इत्र (प्राकृतिक सुगंधियां) के लिए जाना जाता है। इत्र के प्रसिद्ध निर्माता और निर्यातक गुलाब सिंह जौहरी मल, इस बाज़ार में 1819 में आए थे। मसालों के शौकीनों को खारी बावली अवश्य जाना चाहिए - मत भूलें कि यह मसाले ही थे जिन्होंने भारत को पश्चिम से रूबरू कराया था। ज़री और ज़रदोजी की गोटा-किनारी और पन्नियों के लिए किनारी बाज़ार उपयुक्त स्थान है। कटरा नील के कपड़ा बाज़ार में हर प्रकार का कपड़ा जैसे सिल्क, सेटिन, क्रेप, कॉटन और मसलिन खरीदा जा सकता है। भगीरथ पैलेस बिजली के सामान की एशिया की सबसे बड़ी मार्किट है, साथ ही यहां डाक्टरी उपकरण और एलौपैथिक दवाएं भी मिलती हैं। मोती बाज़ार शालों और मोतियों के काम के लिए प्रसिद्ध है तो तिलक बाज़ार केमिकल के लिए।
नई सड़क:- पुरानी दिल्ली स्थित नई सड़क पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध हैं। चांदनी चौक की मुख्य सड़क को यह बाज़ार चावड़ी बाज़ार से जोड़ता है, नई सड़क पर अनेक थोक तथा खुदरा दुकानें हैं, जहां कॉलेजों और स्कूलों की पाठ्यपुस्तकें मिलती हैं। प्रख्यात परांठेवाली गली से थोड़ा बाएं मुड़ते ही आप नई सड़क पहुंच जाएंगे। यहां आपको केवल स्टेशनरी बेचने वाली दुकानें भू मिलेंगी। यह बाज़ार रविवार के दिन बंद रहता है।
चोर बाज़ार: लाल किले और लाजपत राय मार्किट के समीप स्थित चोर बाज़ार का शाब्दिक अर्थ "थीव्स मार्किट" है। यहां आपको इलेक्ट्रॉनिक आइटम से लेकर हर चीज़ मिल सकती है। मूल्य आश्चर्यजनक रूप से कम होते हैं किंतु यह गारंटी नहीं मिल सकती कि उत्पाद कितने दिन चलेगा। आपको मौखिक आश्वासन तथा अपने स्वयं के निर्णय पर निर्भर होना पड़ेगा।
मुझे आज भी याद है ये पहले लाल किले के पीछे लगता था। हम क्रिकेट का सारा सामान बहुत सस्ते में खरीद कर लाये थे। उम्र रही होगी 14 साल हमारी।वाह यादें!
छत्ता चौक:- छत्ता चौक बाज़ार, 17वीं शताब्दी में बना था, जो घूंघट में रहने वाली महिलाओं के लिए था। यह लाल किले की ओर जाने वाली पूरी सड़क पर लगा करता था, जहां खानाबदोश व्यापारी अपना सामान लगाते और बेचकर चले जाया करते। वहां आने वाली महिलाएं अपना पसंद की खरीदारी करती और कोई उन्हें देख भी न पाता था। आज, इस बाज़ार में 40 के करीब दुकानें हैं, जहां आर्टिफिशियल और सेमी-प्रेशियस ज्वैलरी, कढ़ाई वाले बैग, हाथ से छपी वॉल-हैंगिंग और संदिग्ध प्रामाणिकता वाली 'एंटिक' वस्तुएं बिकती है।
दरियागंज बुक मार्किट:- चाहे कोई सर्वाधिक बिकने वाली किताब हो, या आउट-ऑफ-प्रिंट किताब हो, दिल्ली किताबें खरीदने वालों का लोकप्रिय स्थान है। एक किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला दरियागंज का पुराना पुस्तक बाज़ार, अक्सर दुनिया का सबसे बड़ा साप्ताहिक पुस्तक बाज़ार माना जाता है। यह बाज़ार प्रत्येक रविवार को लगता है।यहां अधिकांशतः उपयोग की गई पुस्तकें मिलती हैं। कम मूल्य के अलावा, व्यापक वैरायटी की आउट-ऑफ-प्रिंट पुस्तकें, कठिनाई से मिलने वाली पुस्तकें खरीदारों को यहां खींच लाती हैं। फिक्शन से लेकर मेडिकल साइंस, आर्किटेक्चर से कुकरी, कॉमिक्स से लेकर एटलस, क्लासिक्स से लेकर मैग्ज़ीन और मेनेजमेंट से लेकर विभिन्न रुचियों वाली तथा विभिन्न नामों व शैलियों वाली पुस्तकें यहां मिलती हैं।
मौका लगे तो घूम आइये। अगर जवानी में गये हो तो एक बार और देख आइये।
जय हिंद।
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आप का दिन शुभ और मंगलमय हो।
"निर्गुणी"
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