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क्रिसमस में कुछ खास चीजों का महत्व बढ़ गया है। समय के साथ उन्होंने अपना हिस्सा मजबूत कर लिया है। उसमें से एक है क्रिसमस ट्री।दुनिया मे अब ये व्योपार का बड़ा हिस्सा है । आज की आनंद चर्चा इसी पे है
क्रिसमस का त्योहार हम सभी के जीवन में एक नई तरह की खुशियां और उमंग लेकर आता है। ईसाइयों के साथ-साथ अन्य धर्म के लोग भी इस दिन क्रिसमस ट्री अपने घर लेकर आते हैं और उसे सजाते हैं। मगर कभी सोचा है कि आखिर इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई और क्या है क्रिसमस ट्री को सजाने का इतिहास? आज क्रिसमस के मौके पर हम आपको क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा के बारे में बताते हैं और ले चलते हैं आपको सदियों पुराने इतिहास मे!हम जानते हैं दुनिया भर में क्रिसमस को प्रभु यीशू के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है। बच्चों के बीच में इस त्योहार का विशेष उत्साह देखा जाता है। बच्चों के मन में यह उमंग रहती है सांता क्लॉज आएंगे और उनके लिए गिफ्ट लाएंगे। और फिर क्रिसमस ट्री को सजाने में भी छोटे-छोटे गिफ्ट के बॉक्स का प्रयोग किया जाता है। रंग-बिरंगी अन्य सजावटी चीजों से क्रिसमस ट्री को सजाया जाता है।क्रिसमस ट्री को सजाने की परंपरा से जुड़ा इतिहास भी काफी रोचक है। ईसाई धर्म के अस्तित्व में आने से काफी पहले से एवरग्रीन यानी सदाबहार पौधे और पेड़ों का लोगों के जीवन में काफी महत्व था। वे अपने घरों को उन पेड़ों की डालियों से सजाते थे। उनका मानना था कि ऐसा करने से जादू-टोने का असर नहीं होता है, बुरी आत्माएं, भूत-प्रेत और बीमारियां दूर रहती हैं। प्राचीन मिस्र और रोम के लोग एवरग्रीन पौधों की ताकत और खूबसूरती पर यकीन करते थे।
क्रिसमस ट्री से जुड़ी एक कहानी 722 ईसवी की भी है। जर्मनी के सेंट बोनिफेस को पता चल गया कि कुछ दुष्ट लोग एक विशाल ओक ट्री के नीचे एक बच्चे की कुर्बानी देंगे। सेंट बोनिफेस ने बच्चे को बचाने के लिए ओक ट्री को काट दिया। उसी ओक ट्री की जड़ के पास एक फर ट्री या सनोबर का पेड़ उग गया। लोग इसको चमत्कारिक वृक्ष मानने लगे। सेंट बोनिफेस ने लोगों को बताया कि यह एक पवित्र दैवीय वृक्ष है और इसकी डालियां स्वर्ग की ओर संकेत करती हैं। तब से लोग हर साल जीसस के जन्मदिन पर उस पवित्र वृक्ष को सजाने लगे।
पुराने किस्से और कहानियों से इस बात की भी जानकारी मिलती है कि सबसे पहले क्रिसमस ट्री 1510 में लातविया के रीगा में सजाया गया था। पहले क्रिसमस ट्री को सेब, जिंजरब्रेड, वेफर्स और छोटे-छोटे केक से सजाया जाता था। अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह के पेड़ को क्रिसमस ट्री के तौर पर सजाया जाता है। जैसे न्यूजीलैंड में पोहटाकावा नामक के पेड़ को क्रिसमस ट्री के रूप में सजाया जाता है। इस पर लाल फूल लगे रहते हैं।
माना जाता है कि क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत 16वीं सदी के ईसाई धर्म के समाज सुधारक मार्टिन लूथर ने की थी। ऐसी कहानी मिलती है कि 24 दिसंबर की शाम को वह एक बर्फीले जंगल से जा रहे थे, तो रास्ते में उन्हें एक सदाबहार पेड़ चमकता हुआ दिखाई दिया। इस दैवीय वृक्ष की शाखाएं चंद्रमा की रोशनी बेहद चमक रही थीं। इस पेड़ को देखकर मार्टिन लूथर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने वापस लौटकर ऐसे ही पौधे को घर में लगाया और जब यह वृक्ष के रूप में आ गया तो वह जीसस के जन्मदिन पर इसे हर साल मोमबत्तियों और गुबारों से सजाने लगे। फिर धीरे-धीरे क्रिसमय पर यह परंपरा चलन में आ गई और सारी दुनिया के लोग ऐसा करने लगे।
19 वीं सदी के बाद से अमेरिका में पोंसेत्तिया का पौधा क्रिसमस के साथ जोड़ा जाने लगा जिसमे लाल फूल लगते है।इसी तरह अन्य लोकप्रिय छुट्टी के पौधों में शामिल हैं हॉली अमरबेल लाल, अमर्य्ल्लिस और क्रिसमस का कटीला पौधा।क्रिसमस के पेड के अतिरिक्त घरों के अन्दर दूसरे पौधों से भी सजाया जाता है जिसमे फूलों की माला और सदा बहार पत्ते शामिल हैं।ऑस्ट्रेलिया उत्तरी और दक्षिण अमेरिका और यूरोप का कुछ हिस्सा पारंपरिक रूप से सजाया जाता है जिसमे घर के बहार की बत्तियों से सजावट स्लेड (बेपहियों की गाड़ी), बर्फ का इंसान और अन्य क्रिसमस के मूरत शामिल होते हैं नगर पालिका भी अक्सर सजावट करते हैं क्रिसमस के पताका स्ट्रीट लाइट से टंगा होता है और शहर के हर वर्ग में क्रिसमस के पोधे रखे जाते हैं
पश्चिमी दुनिया में रंगीन कागजों पे धर्मनिरपेक्ष या धार्मिक क्रिसमस मोटिफ्स के साथ चिपके हुए कागज़ का रोल निर्मित करते हैं जिसमे लोग अपने उपहार लपेटेते हैं ।क्रिसमस गाँव का प्रदर्शन भी कई घरों में इस मौसम में एक परम्परा बन गया है। बाकी पारंपरिक सजावट में घंटी मोमबत्ती कैंडी केन्स बड़े मोजे पुष्पमालाएं और फ़रिश्ता शामिल होते हैं।
क्रिसमस ट्री की सुंदरता सजावट के बाद अत्यंत नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करती है। त्योहार सामाजिक मेलजोल से उपजा आनंद है। इसे सब के संग लेने में ही मजा है। क्रिसमस ट्री इसमे चार चांद लगा देता है।
जय हिंद।
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आप का दिन शुभ व मंगलमय हो।
"निर्गुणी"
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Wow, what a information
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