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केर सांगरी खेजड़ी।

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कल आफिस में बैठे बैठे जोधपुर के खाने की बात चल उठी। जो जा पहुंची जैसलमेर के खास खाने पे । केर सांगरी की सब्ज़ी पे। मैंने भी  खाई है अपनी जोधपुर यात्रा के दौरान।  बाजरे की रोटी के साथ। तो आज की आनंद चर्चा राजस्थान की सूखी मेवा पौषक तत्वों से भरपूर सब्ज़ी पे हो जाये। सांगरी राजस्थान के राज्यवृक्ष खेजड़ी का फल है।पहले जाने खेजड़ी के विषय मे।
खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। यह वहां के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। इसके अन्य नामों में घफ़ (संयुक्त अरब अमीरात), खेजड़ी, जांट/जांटी, सांगरी (राजस्थान),
छोंकरा (उत्तर प्रदेश), जंड (पंजाबी), कांडी (सिंध), वण्णि (तमिल), शमी, सुमरी (गुजराती) आते हैं।
 इसका व्यापारिक नाम कांडी है। यह वृक्ष विभिन्न देशों में पाया जाता है जहाँ इसके अलग अलग नाम हैं। अंग्रेजी में यह प्रोसोपिस सिनेरेरिया नाम से जाना जाता है।
खेजड़ी का वैज्ञानिक वर्गीकरण इस तरह से है:
जगत:पादप
विभाग:माग्नोल्योप्सीदा
वर्ग:माग्नोल्योफ़ीता
गण:फ़ाबालेस्
कुल:फ़ाबाकेऐ
वंश:प्रोसोपीस्
जाति: कीनेरारिया (प्रोसोपीस कीनेरार्या)
द्विपद नाम :ड्रूस
खेजड़ी का वृक्ष जेठ के महीने में भी हरा रहता है। ऐसी गर्मी में जब रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है, जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है। अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है। सन 1899 में दुर्भिक्ष अकाल पड़ा था जिसको छपनिया अकाल कहते हैं, उस समय रेगिस्तान के लोग इस पेड़ के तनों के छिलके खाकर जिन्दा रहे थे। इस पेड़ के नीचे अनाज की पैदावार भी ज्यादा होती है।
राजस्थान के राजकीय वृक्ष खेजड़ी की संख्या पिछले 30-35 वर्षों के दौरान घटकर आधी ही रह गई है। इसमें जलवायु परिवर्तन का बड़ा योगदान है
राजस्थान की सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक धरोहर खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया) जलवायु परिवर्तन की विभीषिका का सामना कर रहा है। इस पेड़ के गुणों के कारण ही इसे मरू प्रदेश के कल्पवृक्ष की संज्ञा दी जाती है। यह सर्दियों का मरुस्थलीय पाला और गर्मियों के लू मिश्रित उच्च तापमान, दोनों ही परिस्थितियों में सामंजस्य बैठा लेता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खुद को जीवित रख पाने की इसी अद्भुत विलक्षण क्षमता के चलते ही इसे 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया।
खेजड़ी राजस्थान के अलावा महाराष्ट्र , गुजरात, पंजाब और कर्नाटक राज्य के शुष्क, अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत के अलावा यह प्रजाति अफगानिस्तान, अरब तथा अफगानिस्तान मे भी पाई जाती है। संयुक्त अरब अमीरात में इसे राष्ट्रीय पेड़ का दर्जा हासिल है जिसे घफ कहा जाता है। सूखे इलाकों में इसकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण मरुस्थलीकरण को रोकने का गुण है।
सांगरी, राजस्थान के ग्रामीण अंचल के लोगों के लिए विशेष आर्थिक महत्व रखता है। यह ग्रीष्म काल में ग्रामीण-किसानों (विशेषकर महिला एवं बच्चों) की आमदनी का अच्छा खासा स्रोत है। उत्पादन गिर जाने की वजह से सांगरी का बाजार भाव 1,000 से 1,200 रुपए प्रति किलो हो गया है। सांगरी में लगभग 8-15 प्रतिशत प्रोटीन, 40-50 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 8-15 प्रतिशत शुगर (शर्करा), 8-12 प्रतिशत फाइबर (रेशा), 2-3 प्रतिशत वसा (फैट), 0.4-0.5 प्रतिशत कैल्शियम, 0.2-0.3 प्रतिशत आयरन (लौह तत्व) तथा अन्य सूक्ष्म तत्व पाए जाते हैं जो स्वास्थ्यवर्धक और गुणकारी हैं। कुछ अध्ययनों से ये बात भी सामने आई है कि सांगरी की सब्जी खाने से तेज गर्मी के दौरान शरीर के तापमान को संतुलित बनाए रखने में काफी हद तक मदद मिलती है। यह व्यक्ति विशेष के दैनिक पानी उपभोग को कमतर करने में सहायता करता है। फल के अतिरिक्त इसकी पत्तियों का चारा (लूंग या लूम) पशुओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसकी सूखी पत्तियां मृदा की उपजाऊ शक्ति को कई गुना बढ़ा देती है क्योंकि यह दलहन कुल का फलीदार वृक्ष है। इसकी जड़ों में राइजोबियम जीवाणु पाए जाते हैं जिससे यह प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य भी करता है। मरुस्थल का किसान पानी की कमी के चलते इन वृक्षों का विशेष संरक्षण चाहता है क्योंकि इस पेड़ के नीचे हर फसल की पैदावार अच्छी होती है। इसके तने एवं टहनियों से निकलने वाले हल्के पीले नारंगी रंग के गोंद का भी औषधीय एवं व्यापारिक महत्व है। सबसे बड़ी बात, खेजड़ी की जड़ों के फैलाव से भूमि का क्षरण नहीं होता। इसकी जड़ें रेत को मजबूती से थामे रखती हैं जिससे मरुस्थल के प्रसार पर अंकुश लगता है।
इस पेड़ का बड़ा सांस्कृतिक महत्व है।
खेजड़ी के बहुपक्षीय महत्व के चलते 1730 में भाद्रपद सुदी दशमी के दिन मारवाड़ (जोधपुर) में इन पेड़ों को कटने से बचाने के लिए मारवाड़ क्षेत्र के खेजडली गांव में विश्नोई समाज के 363 लोगों (71 महिलाएं और 292 पुरुष) ने पेड़ों से लिपटकर जान दे दी थी। इनकी नेता अमृता देवी (इमरती बाई) थी जिनके बलिदान से हर कोई वाकिफ है। आज भी इस बलिदान की याद में प्रतिवर्ष इस गांव में खेजडली का मेला आयोजित किया जाता है। इसी घटना के आधार पर 1970 के दशक में उत्तराखंड के में चिपको आंदोलन शुरू हुआ। राजस्थान का विश्नोई समाज आज भी इस मान्यता में बहुत मजबूती से विश्वास रखता है, “सिर साटे रुख रहे तो सस्तो जाण” अर्थात सिर कटाकर भी अगर पेड़ को बचाया जा सके तो यह कोई नुकसान का सौदा नहीं है।
एक तथ्य यह भी है कि 1899 में भयंकर अकाल पड़ा था जिसे “छपनिया अकाल” कहा जाता है। इस दौरान मरुस्थल के लोगों ने खेजड़ी की छाल को पीसकर उसकी रोटी खाकर अपने आपको जिंदा रखा था। आज भी सांगरी के सूखे भाग (खोखा) को बाजरे के साथ पीसकर रोटी बनाई जाती है तथा इसकी छाल को कूटकर अनेक रोगों की दवा बनाई जाती है।
राजस्थान के लोक देवता पीर जाहर वीर गोगाजी (सर्पों के देवता) खेजड़ी से मुख्यत सम्बद्ध है। खेत-घर की एक खेजड़ी “गोगा जांटी” के नाम से अलग पूजनीय रखी जाती है। गोगाजी के जन्म स्थान ददरेवा धाम (चुरु) के गोरख टीला मंदिर के मुख्य प्रांगण मे भी खेजड़ी के बहुत पुराने वृक्ष देखे जा सकते हैं जो नारियल तथा कलावा धागों से बंधे रहते हैं। जब शादी के तमाम मुहूर्त खत्म हो जाते हैं, तो यहां के लोग गोगा जांटी के नाम से शादी ब्याह के मुहूर्त निकालकर शादी करते हैं जिसे गोगा जांटी का “अबूझ मुहूर्त” कहा जाता है। इतना ही नहीं बल्कि आज भी तमाम शादी-ब्याह, तीज- त्योहार में खेजड़ी को तुलसी की तरह ही पवित्र एवं शुभ माना जाता है।
अब बात करते है एक खास व्यंजन की जो देवों के लिए भी दुर्लभ है-
केर कुमटिया सांगरी, काचर बोर मतीर।
तिनु लोका नहीं मिले, तरसे देव अखीर।।
सांगरी :
भारत की विश्व विख्यात सब्जी जिसके चाहने वाले दुनिया भर में है सांगरी राजस्थान के उन पारंपरिक सब्जियों में से एक है जिसकी तुलना सूखे मेवों से की जाती है सांगरी की सब्जी को आमतौर पर एक और फल केर के साथ मिलाकर बनाया जाता है कहा जाता है कि सागरी जैसी सुपाच्य स्वादिष्ट सब्जी थार के अलावा पूरी दुनिया में कहीं नहीं है
सांगरी राजस्थान के प्रमुख पेड़ खेजड़ी की फली है यह ऐसी फली है,जो किसी पौधे पर नहीं बल्कि एक पेड़ पर लगती है।
थार का लोक जीवन हो,लोकगीत हो या फिर पर्यावरण का जिक्र हो। इसमें से किसी की भी चर्चा खेजड़ी के बिना पूरी नहीं हो सकती।
खेजड़ी का जिक्र वेद पुराणों तक में किया हुआ है वैदिक काल में यज्ञ की शुरुआत खेजड़ी से होती थी। रामायण से लेकर महाभारत तक सभी ग्रंथों में खेजड़ी का जिक्र है।
थार की तपती लुओं को झेलकर यह पेड़  मई जून में  भी हरा-भरा मुस्कुराता रहता है।
इसके फलिया फली को सांगरी कहा जाता है।खेजड़ी दलहन परिवार का फलीदार वृक्ष है ।
खेजड़ी की ताकत इसकी जड़ है रेतीली जमीन में इसकी जड़े 100 फुट की गहराई तक भी चली जाती है।
लोकगीतों में कहा जाता है कि इसकी जड़ें धरती की गर्भनाल के साथ जुड़ी रहती है।किसी जमाने में थार की आम जनमानस के लिए मेवा कही जाने वाली सांगरी की सब्जी कि अब पूरी दुनिया दीवानी है आजकल तो इसे शाही सब्जी के रूप में पांच सितारा होटलों व अन्य रेस्टोरेंट में परोसा जाता है।
सांगरी दरअसल खेजड़ी का फल है फली(बींस) भी कहते हैं मार्च से लेकर जुलाई तक के महीने में इन फलियों को पकने से ठीक पहले तोड़ दिया जाता है इन्हें तोड़ के उबाला जाता है फिर सुखा लिया जाता है इसके बाद इनका सालभर इस्तेमाल किया जाता है सांगरी की सब्जी  औषधीय गुणों से भरपूर है  सांगरी में वे सभी छह रस है जो भोजन को सुपाच्य बनाते हैं।
इसके भोजन उपयोग:
सांगरी का उपयोग दाल बनाने में किया जाता है ।
जैसलमेर की केर -सांगरी की सब्जी जिसका नाम लेते ही मुंह में पानी आने लग जाता है,केर-सांगरी जैसलमेर की सबसे लोकप्रिय शाकाहारी व्यंजन है। इसे कम आंच पर पकाया जाता है।
समें थार की फली और केर का उपयोग किया जाता है। यह शाकाहारी भोजन बाजरे की रोटी के साथ बड़े चाव से खाया जाता है।
कढ़ी और सांगरी पचोरी जल्दी से तैयार होने वाली स्वादिष्ट सब्जी है इस की चटनी भी बनती है।
(प्रोसोपीस कीनेरार्या)
इससे मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ: 
सांगरी  को उबालकर इसके पानी को चीनी के साथ मिश्रित करके पिलाने से गर्भपात का खतरा कम किया जा सकता है।
यह शीतलन रोधी के रूप में काम करता है।
यह एक टॉनिक के रूप में कुष्ठ रोग, पेचिश का इलाज करता है। 
 ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, ल्यूकोडर्मा, बवासीर और मांसपेशियों का कांपना के लिए रामबाण इलाज है।
सांगरी पोटेशियम , मैग्नीशियम , कैल्शियम, जिंक और आयरन जैसे खनिजों से समृद्ध है, प्रोटीन और फाइबर का एक अच्छा स्रोत है।
सांगरी की फली में मध्यम मात्रा में सेपोनिन होते हैं जो रक्त में प्रतिरक्षा प्रणाली और कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने में मदद करते हैं।
अब सबसे मशहूर राजस्थान जी पंचकुटा-
पंचकुटा राजस्थान में प्रचलित एक प्रमुख खाद्य है। वास्तव में यह राजस्थान में पाई जाने वाली पॉँच वनस्पतियों से बनाई गयी एक सब्जी है। यह वनस्पतियाँ निम्न हैं
1.कैर
2.कुमटिया
3.सांगरी
4.गोंदा
5.साबुत लाल मिर्च
राजस्थान की जलवायु के अनुसार यहाँ रेगिस्तान में पाई जाने वाली प्रजातियों से बनाई गई इस सब्जी को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है।
इन वनस्पतियों का विवरण निम्नानुसार है
1.कैर
यह छोटे बेर की आकृति का फल है जो हरा ही पेड़ से तोड़ कर सुखा लिया जाता है। यह कांटेदार छोटी झाडी पर उगता है जिसका नाम केपेरिस डेसिदुआ है। यह जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है। सांगरी इसका पेड़ काफी बड़ा होता है और इसकी लम्बी फलियाँ होती हैं। इसका नाम प्रोसोपिस सिनरेरिया है जिसे हिंदी में खेजडी कहते हैं। इस पेड़ का रेगिस्तानी इलाके में बहुत महत्व है। इसकी फलियों को तोड़ कर सुखा लिया जाता है जिसे सांगरी कहते हैं।
2.कुमटिया
यह अकेसिया सेनेगल नामक पेड़ की फलियों के बीज होते हैं। इसका पेड़ भी जंगलों में बहुतायत से पाया जाता है।
3.गोंदा इसका पेड़ काफी बड़ा होता है तथा एक ही पेड़ पर यह प्रचुर मात्र में लगते हैं, इनका आकार छोटी कांच की गोली जितना होता है। इसका आचार बहुत स्वादिष्ट होता है। इसका नाम कोर्डिया मिक्सा है।
4.लाल मिर्च
हरी मिर्च को तोड़ कर सुखा लिया जाता है तथा चटनी आदि के लिए काम में लिया जाता है।
विधि :-उपरोक्त पांचो सब्जियां बाजार में सूखी मिलती हैं, अगर आप चाहें तो मौसम में जब इसका फल वृक्षों पर लगता है आप किसी भी खेत में से इसे तोड़ कर घर पर सुखा सकते हैं। पहले इसे रात भर पानी में भिगो दिया जाता है और सुबह अच्छे तेल मसाले में छोंक लिया जाता है। यह सब्जी काफी दिन तक ख़राब भी नहीं होती.
मित्रो जब भी राजस्थान घूमन का मौका लगे ते केर सांगरी की सब्जी जरूर खाइयो और बाजरे की रोटी न भूलिओं।
जय हिंद।
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सुप्रभात।
"निर्गुणी"
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