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मुझे बांसुरी वाद्य यंत्र बचपन से ही बहुत पसंद है। जब भी धार्मिक मेलों में जाते बांसुरी खरीद कर लाते। जैसे भी हो बजाते। मगर सिद्धस्ता कभी हासिल नहीं हुई। बांसुरी ही एक मात्र ऐसा वाद्य है जो इंसान की आवाज के बेहद करीब की धुन पैदा करती है। इसे आप हुबहू शब्द ब शब्द समझ सकते है।
तो आज जानकारी इसी पे संकलित की है।
लीजिए आपकी नज़र..
बांसुरी अब तक खोजे गए सबसे पुराना मौजूदा संगीत वाद्ययंत्र हैं, जिनमें से सबसे पुराना 35,000 और 43,000 साल पुराना है। जबकि बांसुरी वाद्य यंत्रों की दुनिया भर में प्रभावशाली संगीत उपस्थिति रही है, सबसे लोकप्रिय लकड़ी की बांसुरी में से एक भारतीय बांसुरी है, जिसे उराली, बंसी, बाशी और बांही के रूप में भी जाना जाता है।
परंपरागत रूप से, बाँसुरी को एक विशेष प्रकार के बाँस से तराशा जाता है जो गांठों के बीच की लंबाई तक बढ़ता है। इस प्रकार का बाँस मुख्य रूप से हिमालय पर्वत की तलहटी में पाया जाता है। मजबूती और संरक्षण के लिए बांस को काटा जाता है और प्राकृतिक तेलों से उपचारित किया जाता है। सामग्री के चयन और उपचार के बाद, मुंह के छेद को अंत के किनारे काट दिया जाता है। ब्लोहोल के पास के उद्घाटन को एक कॉर्क के साथ बंद कर दिया जाता है, जिससे हवा को उंगली के छिद्रों से बचने के लिए यात्रा करने के लिए मजबूर किया जाता है।
उपकरण में छेदों को मापा जाता है और बांस में गर्म धातु की कटार से जलाया जाता है। सामग्री को विभाजित करने और ध्वनि को बदलने से रोकने के लिए इस विधि को चुना जाता है। ड्रिलिंग के बाद, उपकरण और वादक के उंगलियों के बीच एक वायुरोधी सील सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक उंगली के छेद को रेत दिया जाता है। विवरण समाप्त होने के बाद, प्रत्येक छेद और माउथपीस के बीच की दूरी, दीवार की मोटाई, उंगली के छेद के व्यास और संगीत के स्वर की आवृत्ति को मापकर उत्पाद की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है। यंत्र पूरा होने के बाद, इसे नायलॉन या रेशम से सजाया और बांधा जाता है।
बाँसुरी, वंसी, वेणु, वंशिका आदि कई सुंदर नामों से सुसज्जित है।
जब हम भगवान श्रीकृष्ण को याद करते है तो बांसुरी को न याद करे ऐसा हो नहीं सकता।
भगवान श्रीकृष्ण के पास 3 प्रकार की बाँसुरी होती थी और सभी बाँस से बनी होती हैं-
मुरली- यह 7 छेद की होती है। यह भौतिक संसार और गायों को आकर्षित करने के लिए होती थी।
वेणु- यह 9 छेद की होती है। यह गोपियों और राधारानी को आकर्षित के लिए होती थी। इसको वह गोपियों को रास नृत्य के लिए बुलाने के लिए बजाते थे।
वंशी- यह 12 छेद की होती है। यह पेड़ों, नदियों, जंगलों आदि को आकर्षित करने के लिए होती थी।
बाँसुरी की अभिव्यक्त शक्ति अत्यंत विविधतापूर्ण है, उससे लम्बे, ऊंचे, चंचल, तेज़ व भारी प्रकारों के सूक्ष्म भाविक मधुर संगीत बजाया जाता है। लेकिन इतना ही नहीं, वह विभिन्न प्राकृतिक आवाज़ों की नक़ल करने में निपुण है, उदाहरण के लिये उससे नाना प्रकार के पक्षियों की आवाज़ की हू-ब-हू नक्ल की जा सकती है।
बाँसुरी की बजाने की तकनीक कलाएं समृद्ध ही नहीं, उस की किस्में भी विविधतापूर्ण हैं, जैसे मोटी लम्बी बांसुरी, पतली नाटी बांसुरी, सात छेदों वाली बांसुरी और ग्यारह छेदों वाली बांसुरी आदि देखने को मिलते हैं और उस की बजाने की शैली भी भिन्न रूपों में पायी जाती है।
प्राचीनकाल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी।
मुरली और श्री कृष्ण एक दूसरे के पर्याय रहे हैं। ऊपर लिखे अनुसार मुरली के बिना श्रीकृष्ण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया।
श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण की बांसुरी से जुड़ी कई कथाएं मिलती है।
1. धनवा नाम का एक बंसी बेचने वाला श्रीकृष्ण को बांसुरी देता है तो वे उस पर पहली बार मधुर धुन छोड़ते हैं जिससे वह बंसी बेचने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है।उसी समय से श्रीकृष्ण बांसुरी बजने वाले बन जाते हैं।
2. उनकी बांसुरी की धुन पर गोपिकाएं और पूरा गोकुल बेसुध हो जाता था।
3. श्रीकृष्ण ने पहली ही बार ऐसी बांसुरी बजाई की सभी को ऐसा लगा जैसे यह बजाना कई जन्मों से सीख रखा है।
4. ऐसा भी कहा जाता है कि जब भगवान शिवजी बालकृष्ण को देखने आए तो उन्होंने ऋषि दधीचि की हड्डी को घिसकर एक सुंदर एवं मनोहर बांसुरी का निर्माण किया। जब शिव जी भगवान श्री कृष्ण से मिलने गोकुल पहुंचे तो उन्होंने श्री कृष्ण को भेट स्वरूप वह बंसी प्रदान की। उन्हें आशीर्वाद दिया तभी से भगवान श्री कृष्ण उस बांसुरी को अपने पास रखते हैं।
5. श्रीकृष्ण जब राधा और गोपियों को छोड़कर जा रहे थे तब उस रात महारास हुआ और उसमें उन्होंने ऐसी बांसुरी बजाई थी कि सभी गोपिकाएं बेसुध हो गई थी। कहते हैं कि इसके बाद श्रीकृष्ण ने राधा को वह बांसुरी भेंट कर दी थी और राधा ने भी निशानी के तौर पर उन्हें अपने आंगन में गिरा मोर पंख उनके सिर पर बांध दिया था।
6. बांसुरी के संबंध में एक धार्मिक मान्यता है कि जब बांसुरी को हाथ में लेकर हिलाया जाता है तो बुरी आत्माएं दूर हो जाती हैं और जब इसे बजाया जाता है तो घरों में शुभ चुंबकीय प्रवाह का प्रवेश होता है।
7. श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनकर गायें लौट आती थींं।
8. राधा कुंड क्षेत्र श्रीकृष्ण से पूर्व राक्षस अरिष्टासुर की नगरी अरीध वन थी। अरिष्टासुर से ब्रजवासी खासे तंग आ चुके थे। इस कारण श्रीकृष्ण ने उसका वध कर दिया था। वध करने के बाद राधाजी ने बताया कि आपने गौवंश के रूप में उसका वध किया है अत: आपको गौवंश हत्या का पाप लगेगा। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी से एक कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। इस पर राधाजी ने भी बगल में अपने कंगन से एक दूसरा कुंड खोदा और उसमें स्नान किया। श्रीकृष्ण के खोदे गए कुंड को श्याम कुंड और राधाजी के कुंड को राधा कुंड कहते हैं।
9. एक बार गोपियों ने श्रीकृष्ण की बांसुरी से पूछा कि आखिर पिछले जन्म में तुमने ऐसा कौन-सा पुण्य कार्य किया था, जो तुम हमारे मुरली मनोहकर के गुलाब की पंखुडी जैसे होंठों पर स्पर्श करती रहती हो? ये सुनकर बांसुरी ने मुस्कुराकर कहा 'मैंने उनके समीप आने के लिए जन्मों तक इंजतार किया। त्रेतायुग में जब भगवान राम वनवास काट रहे थे, तो उस वक्त मेरी भेंट उनसे हुई थी। उनके आसपास बहुत से मनमोहक पुष्प और फल थे। उन पौधों की तुलना में मुझमें कोई विशेष गुण नहीं था। पंरतु भगवन ने मुझे दूसरे पौधों की तरह ही महत्व दिया। उनके कोमल चरणों का स्पर्श पाकर मुझे प्रेम का अनुभव होता था। उन्होंने मेरी कठोरता की भी कोई परवाह नहीं की। जीवन में पहली बार मुझे किसी ने इतने प्रेम से स्वीकार किया था। यही कारण है कि मैंने आजीवन उनके साथ रहने की कामना की। पंरतु उस काल में वो अपनी मर्यादा से बंधे हुए थे, इसलिए उन्होंने मुझे द्वापर युग में अपने साथ रखने का वचन दिया। इस प्रकार श्रीराम ने अपना वचन निभाते हुए श्रीकृष्ण रूप में मुझे अपने निकट रखा।
10. आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे। श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया।
मुरली तो मुरली है और मुरली धर ने बजाई है। हम सब को खूब रास आई है।
ये संकलन आप सब के लिए।
राधे राधे जय राधे कृष्ण।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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