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बरसाना।

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रविवार का दिन उत्तम था। मित्र ने राधा रानी के सानिध्य में बरसाना में कुटिया बनाई है। गृह प्रवेश का कार्यकर्म था। साधुसंतों का जमावड़ा लगा था। हम भी पहुंच गए राधा रानी के सानिध्य में। रविवार का दिन था।मां से मिलने को भीड़ संग ही जाना था। फरीदाबाद से चले कोकिला वन होते हुए नंदगांव के रास्ते बरसाना पहुंचे। कोसी कलां तक ही NH44 से उड़ते हुए पहुंचा जा सकता है और फिर भारत के सड़क मार्ग की असली पिक्चर देखी जा सकी है। बरसाना छोटा सा कस्बा है। विकास अपने आप हुआ लगता है। और किया भी जा जा रहा है। शनिवार रविवार को पार्किंग वालों की चांदी। 100 रुपए तय दर। भीड़ हो आप मोटे हों और राधा रानी के मंदिर तक सीढियां चढ़ नही पा रहे हो , गाडियों के रास्ते में जाम लगा हो, तो घबराइए नहीं मोटर साइकिल है। 100 रुपया में सीधे मंदिर के पास छोड़ देते है। राधे राधे की गूंज सब और सुनाई पड़ती है। मंदिर के अंदर का नजारा अलौकिक और मनमोहक है।
आनंद आनंद आनंद । दर्शन किए आनंद आ गया। शानदार अनुभव था। हमारे तीर्थ स्थल जागृत है। आप सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हो। दर्शन कर लौटने लगे तो आप ब्रज में हों और लस्सी न पिए ऐसा हो नहीं सकता। हर और लस्सी की दुकानें सजी थी। सो पी गई। मोटू कही जाए और चाट न खाए ऐसा कैसे संभव था। गरमा गर्म छोले टिक्की का आनंद लिया गया। मित्र को कोटि कोटि धन्यवाद दिया और कचोरी पूरी सब्जी का भोग लगाया। पूरी यात्रा सुखद और आनंदमय रही। हमारी अर्धांगिनी ने पूरा आनंद लिया।
आप भी जाकर आइए और आनंद के भागी बनिए। थोड़ा और जाने बरसाने को....
यह एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है और मथुरा से यहां के लिए दैनिक बस सेवा उपलब्ध है। मूल रूप से ब्रहमसरण के रूप में जाना जाने वाला बरसाना एक पहाड़ी की ढलान पर स्थित है। पहाड़ी की चार प्रमुख चोटियां दिव्यता का प्रतीक मानी जाती हैं और उन पर लाडली जी का मंदिर है। बरसाना में देखे जाने योग्य स्थान हैं:
श्री जी मंदिर: लाड़ली लाल के रूप में भी जानी जाने वाली देवी श्रीजी के मंदिर को आज से 5000 वर्ष पहले वज्रनाभ द्वारा स्थापित किया गया था।
मान मंदिर: कहा जाता है, जब राधा नाराज़ होती थीं तब एकांत पाने के लिए यहां आती थीं। राधा को खुश करने के लिए कृष्ण रोते और विनती करते थें। मंदिर के अंदर एक छोटी सुरंग अंधेरी कोठरी तक जाती है, कहा जाता है कि यही वो जगह है जहां राधा जी जाकर बैठ जाती थीं।
मोर कुटीर: मोर कुटीर वह जगह है जहां कृष्ण और राधा मोर और मोरनी के रूप में नृत्य किया करते थे।
कृष्ण कुंड या राधा सरोवर: यह जंगलों व गुफाओं के मध्य वह कुंड है जहां राधा स्नान किया करती थीं। साथ ही राधा-कृष्ण यहां जलक्रीड़ा भी करते रहे होंगे |
संकरी खोड़: यह ब्रह्मा पर्वत और विष्णु पर्वत के संधिस्थल पर एक बहुत संकरा रास्ता है। कृष्ण और ग्वाल गोपाल, कर संग्राहक की वेशभूषा में राधारानी और उनकी सखियों का रास्ता रोक लेते थे और संकरी खोड़ से जाने के लिए दही, मक्खन और घी की मांग करते थें।
रंगीली महल: रंगीली महल , 1996 में स्थापित, जगद्गुरु कृपालु परिषद के मुख्य केंद्रों में से एक है , जो श्री राधारानी के शाश्वत निवास, बरसाना में श्री जी मंदिर से एक किलोमीटर पहले स्थित है । जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने बरसाना धाम की महिमा का वर्णन करते हुए कहा था कि इस बरसाना धाम में दिव्य बरसाना धाम का वास है। रंगीली महल में, हॉल के चारों ओर श्री राधा कृष्ण के अतीत के चित्रण के साथ एक बड़ा सत्संग हॉल है । यहां खूबसूरती से बनाए गए बगीचे, झरने और अन्य आकर्षण भी हैं।
आप यहां की अलौकिक सुंदरता का अनुभव कर सकते है बशर्ते आप में धर्म और अध्यात्म के प्रति रुचि हो।
धन्यवाद।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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