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"विकार"

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आज बहुत दिनो बाद कुछ लिखने का मन किया। कुछ महसूस हुआ कुछ गुजरा तो लगा कुछ बात करूं। शब्द है "विकार"। विकार को बहुत शब्दो से रूप दिया गया है जैसे की विकार का पर्यायवाची शब्द है दोष, बुराई, बिगाड़, खराबी, त्रुटि, कमी, फ़ितूर, अगुण, अपकृष्टता, अपगुण, अबतरी, अवगुण, इल्लत, ऐब, कज, कमी, ख़ामी, खामी, खोट, दुर्गुण, नुक़्स, विकृति आदि हैं।
अगर इसे परिभाषित करना हो तो इसका मतलब किसी वस्तु का रूप, रंग आदि बदल जाना होता है । विकृति उत्पन्न होना होता है।
विकार में निरुक्ति के चार प्रधान नियमों में एक है जिसके अनुसार एक बर्ण के स्थान में दूसरा वर्ण हो जाता है ।
ये दोष की प्राप्ति है । बिगड़ना या खराबी भी कह सकते है।
ये दोष भी है  बुराई भी और अवगुण भी ।
ये मन की वृत्ति या अवस्था भी है । मनोवेग या प्रवृत्ति भी है । यह वासना  भी है। 
वेदांत और सांख्य दर्शन के अनुसार किसी पदार्थ के रूप आदि का बदल जाना भी विकार ही है। परिणाम । जैसे,ककण सोने का विकार है; क्योंकि वह सोने से ही रूपांतरित होकर बना है ।
ये एक तरह से उपद्रव भी है और मानसिक हानि भी ।
ये बीमारी की संज्ञा भी है। रोग भी और व्याधि भी है।
ये शारीरिक घाव भी है । जख्म भी और क्षत भी है ।
ये एक कस  परिवर्तन भी है । रद्दोबदल भी ।
ये मनोवृत्ति या विचार का बदलना भी है ।
और अगर धर्म ग्रन्थों के माध्यम से इसे जाने तो विकार को रावण के दस सिरों से भी समझा जा सकता है।
रावण के दस सिर कौनसे हैं?
ये हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, घृणा, ईर्ष्या, द्वेष एवं भय।
यहां मुख्य पांच विकार है-काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह, अंहकार ।
रावण के दस शीश में माना जाता है पांच विकार स्त्री के व पांच विकार पुरुष मनुष्य के और मध्य के शीश पर गधे का सिर दिखाते है।ये मिलकर हुए दस आसुरी गुण रावण के।
आत्मा ही स्त्री या पुरूष का शरीर धारण करती है और जैसे स्त्री का शरीर धारण की हुई आत्मा वैसा हीआचरण करेगी अर्थात् पांच विकारों से ग्रस्त आत्मा ,स्त्री के शरीर द्वारा वही पांच विकारों को मनोविकारों के रूप में दर्शायेगी।
पुरुष के शरीर में हो तो पुरूष के शरीर द्वारा मनोविकार दर्शायेगी।बाह्यरूप में जिसे हम विकारी स्त्री अथवा विकारी पुरूष कहेंगे।
रावण का अर्थ ही है दुसरों को दुःख देनेवाला ये दुर्गुणों का प्रतीक है।और गधे का सिर अर्थात् शरीर से बलवान परंतु विकारवश कमजोर होने का , अनैतिक बातों कि जिद व विपरीत हीन बुध्दि का प्रतीक है।यह पांच विकार मुख्य है और फिर इनके छोटे छोटे बच्चे भी है जिनको हम अनदेखा नही कर सकते।
जैसे ।क्रोध=रोब,गुस्सा
।काम=मद,देह-अभिमान वश आकर्षित करना(किसी व्यक्ति ,वस्तु ) (ज्यादातर स्त्री रूप में आत्मा का विकर्म) या होना।लोभ=लालच,लालसा ।मोह- लगाव,(मेरे बच्चे,मित्र,जीवन साथी,माता पिता व पोत्रे-पौत्रियां )(-यह भी स्त्री रूपी आत्मा मे ज्यादा होता है)।अंहकार= गर्व,रूबाब(मै-पन ,यह ज्यादातर पुरुष रूपी आत्मा मे दिखता है)।फिर और भी आसुरी गुण है ईर्ष्या,द्वेश, घृणा, असत्यता, दंभ (नकली आचरण)!!!
और अंत में अगर आपको विकार समझ आ गया हो तो ये शारीरिक और मानसिक दो रूपों में जग के सामने हमेशा रहता है।
मानसिक विकार शरीर के ज्यादातर विकारों का कारक होता है। इसलिए मानसिक शुद्धि जरूरी है।मानसिक विकार से मुक्त जीवन सौम्य , सुंदर , प्रभावशाली और बहुत ही संतुलित होता है।
मानसिक विकारों की व्याख्या अगले लेख में करूंगा । आज परिभाषा तक ही।
धन्यवाद।
शुभ रात्रि।
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जय हिंद।
"निर्गुणी"

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