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कार्तिक माह विशेष-मोहिनी अवतार।

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नारायण नारायण।आज की आनंद चर्चा मोहिनी अवतार पे हो जाये और इस धार्मिक माह का समापन इस अमृत रूपी कथा से किया जाए।
अग्नि पुराण पद्य पुराण ब्रह्मवैवर्त पुराण और भागवत पुराण मत्स्य पुराण आदि में भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की कथा मिलती है। भगवान विष्णु का मोहिनी अवतार’ उनका तेहरवां अवतार माना गया है।हम जानते है के देवता और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के फलस्वरूप अमृतकलश की उत्पत्ति हुई जिसे असुर लेकर भागने लगे। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध प्रारम्भ हो गया। सुर पक्ष कमजोर पड़ रहा था। यदि अमृत असुरों के हाथों लग जाता तो प्रबल असुर धरा पर अधर्म का राज चतुर्दिक स्थापित कर देते।ऐसा सोचकर भगवान विष्णु ने सर्वविश्वसुन्दरी मोहिनी स्त्री का रूप धारण किया और सुर तथा असुरों को अपने रूप से मोहकर अमृत बांटने हेतु राजी कर लिया। राक्षसराज विप्रचित्ति और सिंहिका नामक राक्षसी से उत्पन्न पुत्र राहु वेश बदल कर देवताओं की कतार में बैठकर अमृत ग्रहण कर गया।
इस बात को सूर्य और चंद्रमा भांप गए और मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु को यह तथ्य ज्ञात करवा दिया। राहु तो अमृत पी चुका था सो वह अमर तो हो ही चुका था। फिर भी उसे निष्क्रिय करने के उद्देश्य से श्रीमन नारायण ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर धड़ से काटकर अलग कर दिया।
इस प्रकार अमरत्व प्राप्त राहु राक्षस के सिर को राहु और धड़ को केतु के नाम से जाना गया। तभी से यह सूर्य और चंद्रमा को ग्रसता रहता है।
भगवान विष्णु का मोहिनी नामक यह अवतार उनका तेरहवां अवतार कहलाया गया।  
गणेश उपपुराण में भी मोहिनी अवतार कथा है। जो कुछ इस तरह है।भस्मासुर पौराणिक कथाओं में ऐसा राक्षस था जिसे वरदान था कि वो जिसके सिर पर हाथ रखेगा, वह भस्म हो जाएगा। जो उसने अपने आराध्य शिव की कठोर तपस्या कर उनसे पाया था।  वर तो उसे उसकी तपस्या से मिला मगर इस वर ने जल्द ही राक्षसी बुद्धि का रूप ले लिया। कथा के अनुसार भस्मासुर ने इस शक्ति का गलत प्रयोग शुरू किया और स्वयं ही अपने आराध्य शिव जी को भस्म करने चला। तब शिव जी ने विष्णु जी से सहायता माँगी। विष्णु जी ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण किया, भस्मासुर को आकर्षित किया और नृत्य के लिए प्रेरित किया। नृत्य करते समय भस्मासुर विष्णु जी की ही तरह नृत्य करने लगा और उचित मौका देखकर विष्णु  जी ने अपने सिर पर हाथ रखा, जिसकी नकल शक्ति और काम के नशे में चूर भस्मासुर ने भी की। भस्मासुर अपने ही वरदान से भस्म हो गया।
ये कथा में अपनी माता से बार बार सुनता था। आनंद लेता था।बुद्धि से कोई ताकत नही जीत सकती इसका बहुत कुछ संचय और समझ कथाओं के माध्यम से बचपन मे ही हो गया था।
नारायण नारायण।
जय हिंद।
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शुभ रात्रि।
"निर्गुणी"
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